SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एगे परिमंडले, एगे किण्हे, एगे णीले", एगे लोहिए, एगे हैंलिद्दे, एगे किल्ले, एगे सुब्र्भिगंधे, एगे दुब्भिगंधे, एगे तित्ते, एगे कैंडुए, एगे कैंसाए, एगे अंबिले, एगे मैंहुरे, एगे खडे जा लुक् । सू० ४७ मूलार्थ:- शब्द, रूप, गंध, रेंस, स्पर्श, शुभं शब्द, अशुभ शब्द, सारुं रूप, खरांच रूप, दीर्घ संस्थान, लघु संस्थान, वृत्त (वाटलो) सं०, त्रिकोण सं०, चतुरस्रं (चोरस) सं०, विस्तीर्ण सं०, वलय सं०, कृष्णवर्ण, नीलवर्ण, रक्तवर्ण, पीतवर्ण, श्वेतवर्ण, सुगंध, दुर्गंध, तीखो रस, कडवो रेसे, कषाय (तुंरो) रस, खाटो रस, मधुर रस, कर्कश यावत् लेखो ए शब्दादि दरेक एकेक छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टीकार्थः- आ सूत्रोमां शब्दादि सूत्रो सुगम छे, परंतु शब्दयते-जेनावडे जे कहेवाय छे ते शब्द - अवाज, ए श्रोत्रद्रियनो विषय छे. रूप्यते-जे जोवाय छे ते रूप-आकार चक्षुइंद्रियनो विषय छे. घायते-जे सुंघाय छे ते-गंध, घ्राण (नाक) नो विषय छे. रस्यते-जे आस्वादन कराय छे ते रस, रसना इंद्रियनो विषय छे. स्पृश्यते - जे स्पर्शाय छे-छबाय छे ते स्पर्श, स्पर्शन इंद्रियनो विषय छे. शब्दादिनुं एकपणुं सामान्यथी छे अथवा सजातीय अने विजातीयना भेदनी अपेक्षा सिवाय एकपं भाव. शब्दनाचे भेद कहे छे- 'मुभिसद्दित्ति-शुभ शब्दो मनने गमता, 'दुभित्ति-मनने जे न गमे ते अशुभ शब्द, एवी रीते बीजा पण शब्दो आ वे भेदमां अंतर्भूत थाय छे एम जाणवुं. एवी रीते रूपना व्याख्यानमां पण सुरूप वगेरे श्वेतरूप पर्यंत जे चौद भेद छे ते एकेक छे. तेमां मनने गमतुं रूप ते सुरूप हे अने तेथी विपरीत ते कुरूप छे. दीर्घ-अति For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy