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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानासूत्र १ स्थाना ध्ययने ४ एकयोगता सानुवाद RXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXKon कारण के ते प्रतिज्ञार्थी आत्मा क्लेश पामे छे. धर्मप्रतिज्ञा एक छे, कारण के ते प्रतिज्ञाथी आत्मा पर्यवजात-ज्ञानादि पर्यववाळो थाय छे. देव, असुर अने मनुष्योने ते ते समयमां मनः एक छे. [देवादिने ते समयमां वचन एक छे, देवादिने ते ते समयमां कायव्यापार एक छे. ]' उत्थान, कर्म, बल, वीय, पुरुषकार अने पराक्रम देव, असुर अने मनुष्याने ते ते समयमां एक छे. ज्ञान एक, दर्शन एक अने चारित्र एक छे. टीकार्थ:-'एगे जीवे' एकः-केवळ जीव्यो, जीवे छे अने जीवशे ते जीव-प्राण धारण स्वभाववाळो ते आत्मा, एक जीव प्रत्ये प्रत्येकशरीरनामकर्मना उदयथी प्राप्त थयेलु जे शरीर ते प्रत्येक दीर्घ वगेरे प्राकृत शैलीथी प्रत्येकक. ते प्रत्येकवडे 'शीर्यत इति' शरीरं-जीरण थाय छे ते शरीर-देह, ते ज अनुकंपित बगेरे स्वभाव सहित शरीरक. तेनावडे जणातो-प्रत्येक शरीरने आश्रित जीव एक छे. अथवा वे 'णकार' वाक्यालंकारना अर्थवाळा छे, तेथी प्रत्येकक शरीरमा जीव एक वर्ते छे-रहे छे एवो वाक्यार्थ थाय, अहिं 'पडिक्वएणं'त्ति एवो पाठ क्यांक देखाय छे. आनो अर्थ न समजायाथी ते पाठनी व्याख्या करी नथी. अहिं वाचनाओर्नु चोक्कसपणुं न होवाथी वधी वाचनाओनी व्याख्या करवाने अशक्य होवाथी अमे कोईक ज वाचनानुं व्याख्यान करशु. बंध, मोक्ष वगेरे आत्माना धर्मो हमणां ज पूर्व कहेला छे. ते अधिकारथी ज आथी आगळ आत्माना धर्मोंने एगा जीवाणं (सू०१८) इत्यादि मूत्रवडे पगे चरित्ते (सू०४३) आ अंत्य सूत्रबडे कहे छे:'एगा जीवाणं'-आ सुगम छे. 'अपरियाइतत्ति' जीवोने विकुर्वणा एक छे. ते विकुर्वणा वैक्रिय समुद्घातबडे क्यांयथी पण बहारना पुद्गलोने ग्रहण कर्या विना भवधारणीय वैकिय शरीरनी रचनालक्षणवाळी स्व स्व उत्पत्तिस्थानमां जीवोबडे जे RRRRR For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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