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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जं से आया परिकिले सति। सू० ३९, एगा धम्मपडिमा जं से आया जब हजाए। सू० ४०, एगे मणे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि । सू० ४१, एगे [*एगा वई देवा० एगे काय वायामे देवा०] उट्टा कम्वलवी रियपुरिसकारपरक मे देवासुरमनुयाणं तंसि २ समयंसि । सू० ४२, एगे नाणे एगे दंसणे एगे चरिते । सू० ४३ मूलार्थः प्रत्येक प्रत्येक शरीरमा रहेलो जीव एक छे. बहारना पुद्गलो लीथा बिना जीयेने त्रिकुणा एक छे. मनोयोग एक छे. वचनयोग एक छे. शरीरना व्यापाररूप काययोग एक छे. उत्पाद उत्पत्ति एक छे. विगति-विनाश एक छे. विगताची-मरेला जीवनुं शरीर एक छे. गति एक छे. आगति एक छे. च्यवन-वैमानिक अने ज्योतिष्कोनुं मरण एक छे. उपपात - देव अने नारकोनो जन्म एक छे. तर्क एक छे. संज्ञा एक छे. मति एक छे. विज्ञता-विद्वत्ता एक छे. पीडा एक छे. छेदन एक छे. भेदन एक छे. चरमशरीरी जीवोनुं मरण एक छे. निर्मल चारित्रवान यथाभूत अने पात्रनी माफक पात्र (स्नातक) एक छे. एकावतारी जीवोने एक भवग्रहगयी थनारुं एकभूत ( समान ) दुःख एक छे. अधर्म प्रतिज्ञा एक छे, * काटवणा कौंसमां लखेल पाठ बाबूवाळो प्रतिमां छे अने आगमोदय समितिवाको प्रतिनां नया तथापि टीकाकार व्याख्या करतां कहे छे के ‘एगे मगे इत्यादि सूत्रत्रयं आ उपरथी एम समनाय छे के सूत्र त्रगे जाईएका माटे अनोए वचनयोग अने काव्यापारना बन्ने सूत्र लखेल छे. त्यां देवा ०ए पाठयो मनोयोगना पाठनमाण संपूर्ण वांचं. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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