________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद १३२॥
मेलनु सहन करवू अने ब्रह्मचर्य- पालन वगेरे अनेकविध कारणबडे उत्पन्न वाधी निजरा अनेक प्रकारे पण छे. अथवा ११. स्थानाद्रव्यथी वस्त्रादिनु नाश थर्बु अने भावी कर्मोनु खरवू, एम वे प्रकारे पण छे. तथापि निजरानु समानपणुं होवाथी एक ज ध्ययने निजरा छे. शंका-निजरा अने मोक्षमा शो भेद छ? समाधान-देशी कमनो क्षय ते निजरा अने सर्वथा कर्मनो क्षय ते मोक्ष. जीवपदार्थ(सू०१६) अहिं जीव विशिष्ट निजरानुं पात्र प्रत्येक शरीरनी स्थितिमा जथाय छे. साधारण शरीरनी अवस्थामा विशेष निजरा
विशेषाः थती नथी, अतः प्रत्येक शरीरमा रहेल जीवनुं स्वरूप निरूपण करवा माटे कहे छे 'एगे जीवे' इत्यादि अथवा सामान्यथी प्रस्तुत शास्त्रवडे वणवायेल जीवादि नव पदार्थो कया. हवे विशेषरूपे जीवपदार्थनु स्वरूप कहे छः
एगे जीवे पाडिकएणं सरीरएणं । सू० १७, एगा जीवाणं अपरिआइत्ता विगुव्वणा। सू०१८, एगे मणे। सू०१९, एगा वई।सू०२०, एगे कायवायामे।सू० २१, एगा उप्पा। सू० २२, एगा वियती। सू० २३, एगा वियच्चा।सू०२४, एगा गती।सू०२५, एगा आगती। सू०२६, एगे चयणे। सू०२७,एगे उववाए। सू०२८, एगा तक्का।सू०२९, एगासन्ना। सू०३०, एगा मन्ना। सू०३१, एगा विन्नू। सू०३२, 3 एगा वेयणा।सू० ३३, एगा छेयणा । मू०३४, एगा भेयणा । सू० ३५, एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं सू० ३६, एगे संसुध्धे अहाभूए पत्ते। सू०३७, एगदुक्खे जीवाणं एगभए । सू०३८,एगा अहम्मपडिमा |
॥३२॥
NEXEENEXXXXX
For Private and Personal Use Only