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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छिद्रोमां हमेशा जे जल प्रवेश करे छे तेने तथाप्रकारना द्रव्यवडे बंध करवं ते द्रव्यसंवर छ, तथा जीवरूप जहाजमा इंद्रियादि छिद्रोद्वारा कर्मरूप जल दाखल थाय छे तेनो समिति वगेरेथी निरोध करवो ते भावसंबर छ. ते संवर बे प्रकारनो छे, तो पण संवरनुं समानपणुं होवाथी एक संवर छे. (मू० १४) केवल संवर छते अयोगि गुणस्थाननी अवस्थामां कमोंर्नु वेदन ज थाय छे परंतु कर्मनो बंध थतो नथी, माटे हवे वेदनानुं स्वरूप कहे छे-'एगा वयणा' वेदनं-वेदना. कर्मना स्वाभाविक उदयवडे अथवा उदारणा करवावडे उदयावलिकामा प्रवेश पामेल कर्मनो अनुभव करवा-भोगवटो करवो. ते वेदना ज्ञानावरणीयादि कर्मनी अपेक्षाए आठ प्रकारे पण छे तेमज विपाकोदय अने प्रदेशोदयनी अपेक्षाए वे प्रकारे पण छे. शिरःलुंचन ( लोच ) वगेरे आभ्युपगमिकी-स्वयं स्वीकारेली अने औपक्रमिकी गेगादिथी थयेली एम बे प्रकारनी पण वेदना छे; तथापि वेदनानुं समानपणुं होवाथी एक ज वेदना छे. (मू०१५) भोगवायेल रसविशिष्ट कर्म ते आत्मप्रदेशोथी खरी जाय छे, नाश पामे छे ए हेतुथी वेदना पछी कर्मना खरवारूप निर्जरानु निरूपण करतां कहे छे-'एगा निजरा' निर्जरणं-निर्जराविशेष नाश पामबु, सर्वथा सडी ( खरी) जq ते निर्जरा आठ प्रकारना कर्मनी अपेक्षाए आठ प्रकारे पण छे, बार प्रकारना तपवडे उत्पन्न थवाथी बार प्रकारनी पण निर्जरा छे. वगर इच्छाए क्षुधा, तृषा, शीत, आतप, दंश (डांस), मशक (मच्छर), १. अबाधा काल पूर्ण थये कर्मनो उदय छे ते स्वाभाविक उदय. २. जीवना वीर्यबळथी कर्मने उदयावलिमा खेची लावg ते उदीरणा. ३ के इपण प्रकृति, पोतानो अनुभव स्वतंत्रपणे आपे ते विपाकोदय. ४. एक प्रकृत्ति बीजी प्रतिमा मलीने जे फल, प्रदेशो| थी भोगवाय ते प्रदेशोदय, Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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