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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RRRRRRRRRRRRRRRRRKKK XEKXXXXXXX commmm सर्वथा क्षय थवाथी मोक्ष थाय छे. उदाहरण-अत्यंत अपथ्य आहारना सेवनथी रोग थाय छे अने ते ज अपथ्य आहारनो थोडो थोडो घटाडो करवाथी छेवट अल्प अपथ्य आहारपणुं आरोग्यने करनारुं छे अने सर्वथा आहारना त्यागथी प्राणनो नाश थाय छे. भाष्यकार कहे छ के:पावुकरिसेऽधमया,तरतमजोगाऽवकरिसओसुभया। तस्सेव खए मोक्खो, अपत्थभत्तोवमाणाओ॥७॥ आ गाथानो भावार्थ कहवायेल छे. अहिं समाधान-अत्यंत अल्प पाप होवाथी सुखनो प्रकर्ष एम तमे जे कयुं ते अयुक्त। छे, कारण के आ सुखना प्रकर्षनो अनुभव ते स्वानुकूल कर्मना प्रकर्षनो अनुभव होवाथी दुःखना प्रकर्षना अनुभवनी माफक उत्पन्न थाय छे. जेम दुःखना प्रकर्षनो अनुभव पोताना अनुरूप पापकर्मना प्रकर्षथी उप्तन्न थयेल छ एम तमाराबडे स्वीकार करायल छे, तेम आ सुखना प्रकर्षनो अनुभव पण प्रकर्ष अनुभूति होवाथी पोताने अनुरूप पुण्यकर्मना प्रकर्षथी उत्पन्न थशे. एवी रीते प्रमाणनुं फल छे. (सू०११) पुण्यनो प्रतिपक्षभूत पाप छे माटे हवे तेनुं स्वरूप कहे छ:-'एगे पावे' पाशयतिआत्माने बांधे छ, विकलता करे छे, आत्माने पाडे छे, आत्माना आनंदरसने शोषे छे अने क्षीण करे छे ते पाप छे. ते ज्ञाना वरणादि ब्याशी भेदरूप छे. ते कहे छे:R नाणंतरायदसगं, दंसण णव मोहणीयछब्बीसं। अस्सायं निरयाऊ, नीयागोएण अडयाला ॥७॥ निरयदुगं तिरियदुर्ग, जाइचउकं च पंच संघयणा।संठाणाविय पंच उ, वन्नाइ चउक्कमपसत्थं ॥७२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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