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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ २९ ॥ www.kobatirth.org जो तुलसाहणाणं, फले बिसेसो न सो विणा हेउं । कज्जत्तणओ गोयम !, घडो व्व हेऊ य से कम्मं ॥ ६८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ गाथानो भावार्थ कहेवायो छे. कर्मनी सिद्धि माटे बीजुं अनुमानप्रमाण कहे छे- इंद्रियादि विशिष्ट होवाथी आ बालशरीर अन्य देहपूर्वक छे. आ अनुमानमां जे शरीर इंद्रियादिवाएं छे ते शरीर अन्य शरीरपूर्वक जोवाय छे. जेम युवान शरीर बालदेहपूर्वक छे तेम इंद्रियादिवाएं आ बालशरीर छे, ते कारणथी अन्य शरीरपूर्वक छे, अने जे अन्य शरीरपूर्वक आ बालशरीर छे ते कर्म. ते कारणथी कर्म छे. भाष्यकार कहे छे के बालसरीरं देहंतरपुव्वं इंदियाइमत्ताओ । जह बालदेहपुव्वो, जुबदेहो पुव्वमिह कम्मं ॥ ६९ ॥ आ गाथानो भावार्थ कहेवायेल छे. शंका-कर्मनो सद्भाव छते पण एक पाप ज पदार्थ विद्यमान छे, परंतु पुण्य पदार्थ नथी. जे पुण्यनुं फल सुख कहेवाय छे ते. तरतमयोगथी अल्प पापनुं ज फल छे, जे कारणथी पापनो परम उत्कर्ष ( वृद्धि ) छते अधममां अधम फल थाय छे. तरतमयोगवडे अपकर्ष ( ओछाश ) ना भेदरूप पापनी मात्रानी विशेष वृद्धि अने हानिथी यावत् छेल्लो अपकर्ष, तेमां जे कांईपण पापनी मात्रा रहे छे तेमां ज अत्यंत शुभफलपणुं छे, पापना घटवाथी अने ते पापनो ज १. आ गाथा, भाष्यमा १६१३ मी छे, ते अग्निभूतिने उद्देशोने कहेल छे. २. आदि शब्दधी सुखित्व, दुःखित्व अने प्राणापातादि हेतु जाणत्रा, ३. अहि अन्य शरीर ते कार्मण शरीर जाणत्रु अने ते ज कर्म छे. For Private and Personal Use Only १ स्थानाध्ययने पुण्यसत्ता ११ सूत्रम् ।। २९ ।।
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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