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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलोक, ते कारणथी अलोक छे. वळी शंका-न लोकः अलोकः-एम कहेबाथी घट, पट वगेरेमांज कोई पण एक वस्तु ( अलोक ) थशे. अहिं बीजी वस्तुनी कल्पनावडे शु? (अर्थात् अलोकनी जुदी कल्पना शामाटे करवी ?). समाधान-एम कहेवू नहिं. जे हेतुथी निषेधना सद्भावथी निषेध्य-निषेध करवा योग्यना अनुरूपवडे-समानपणे निषेध होवू जोइए. निषेध्य लोक छ, ते आकाशविशेष जीवादि द्रव्यनुं पात्र छ, आथी चोक्कस अलोक पण आकाशविशेषरूप हो, जोइए. जेम अहिं 'अपण्डित ' एम कहे छते विशिष्ट ज्ञान रहित चेतन ज जणाय छे परंतु अचेतन घटादि नहिं, तेनी माफक अलोक पण लोक समान होवू जोइए. कयुं छे के: लोगस्सऽस्थि विवक्खो, सुद्धत्तणओ घडस्स अघडोव्व। [प्रेरकः] स घडादी चेव मती [गुरुः], न निसेहाओतदणुरूवो ॥ ५७ ॥ आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे. (सू०६) लोकअलोकना विभागनो करनार धर्मास्तिकाय होवाथी तेनुं स्वरूप कहे छे एगे धम्मे । सू०७, एगे अधम्मे । सू०.८, एगे बंधे । सू० ९, एगे मोक्खे । सू० १०, एगे पुण्णे। सू० ११, एगे पावे। सू० १२, एगे आसवे। सू० १३, एगे संवरे । सू० १४, एगा वेयणा । सू० १५, एगा निजरा । सू० १६ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal use only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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