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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नान सानुवाद ।। २५ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मूलार्थ:- एक धर्मास्तिकाय छे. एक अधर्मास्तिकाय छे. एक बंध छे. एक मोक्ष छे. एक पुण्य छे. एक पाप छे. एक आश्रव छे. एक संवर छे. एक वेदना छे. एक निर्जरा छे. टीकार्थ :- प्रदेशार्थपणे असंख्यात प्रदेशात्मक होवा छतां पण द्रव्यार्थपणे तेनो एकत्व होवाथी धर्मास्तिकाय एक छे. गमनपरिणामने पामेला जीव अने पुद्गलोनुं स्वाभाविक क्रियावत्पणुं छते गतिस्वभावने धारण करवाथी ( सहायक थवाथी ) धर्म अने अस्ति-प्रदेशो तेओना समूहात्मकपणाथी काय ते अस्तिकाय अर्थात् धर्मास्तिकाय हवे तेना विपक्षरूप अधर्मनुं स्वरूप कहे छे -" एगे अधम्मे " द्रव्यथीज एक छे. धर्म नहिं ते अधर्म अर्थात् अधर्मास्तिकाय. धर्मास्तिकाय, जीव अने पुद्गलोने गमनमा सहाय करनार छे. आ (अधर्मास्तिकाय), तेना (धर्मास्तिकाय) थी विपरीत होवाथी स्थिर थवामां मदद करनार छे. शंका- धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकायनुं अस्तित्व (होवापर्णु) केम जाणी शकाय ? समाधान-अमे प्रमाणथी कहीए छीए. ते आ प्रमाणे- अहिं गति अने स्थिति, सर्व लोकोने प्रसिद्ध कार्य छे. परिणामी ( कर्त्ता ) ना अपेक्षा कारणने आधीन आत्मलाभरूप कार्य वर्त्ते हे. घटादि कार्योंमां ते प्रमाणे देखाय छे. वळी माटीनो पिंड छते पण दिशा, देश, काळ, आकाश अने प्रकाशादि अपेक्षा कारण सिवाय घट थतो नथी, जो थाय तो माटीना पिंड मात्रथी ज कार्य थाय, परंतु तेम थतुं नथी. जीव अने पुद्गलमां परिणाम कारणपणुं रहेते छते अपेक्षा कारण विना गति अने स्थिति बन्ने य थवाने योग्य नथी अने गति तेमज स्थितिपणुं तो देखाय छे. आ कारणथी ते बन्नेनी सत्ता जणाय छे. जे अपेक्षा कारण छे ते धर्म अने अधर्म छे. आ तात्पर्य छे. गतिपरिणामने पामेला जीवं ने पुद्गलोने जे गतिमां सहायक ते धर्मास्तिकाय. माछलाओने जेम जल गतिमां सहायक छे ************ १ स्थानाध्ययने धर्मास्तिका याद्या निर्ज रान्ताः ७–१६ सूत्राणि. ॥ २५ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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