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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥२४॥ स्थानाध्ययने दण्डक्रिया लोकालोकाः। XxxxxxxxxxxxXWXXXXXXXXXXXXX:08:* नामं ठवणादविए, खित्ते काले भवे य भावे य । पज्जवलोए य तहा, अविहो लोयनिक्खेवो ॥५६॥ १ नाम अने २ स्थापना सुगम छे. ३ द्रव्यलोक-जीव-अजीवद्रव्यरूप, ४ क्षेत्रलोक-अनंतदेशात्मक आकाशमात्र, ५ काललोक-समय, आवलिकादि,६ भवलोक-नारक वगेरे, पोतपोताना भवमां वर्तता,जेमके मनुष्यलोक, देवलोक, ७ भावलोकऔदयिकादि छ भावो. ८ पर्यायलोक-द्रव्योना पर्यायमात्ररूप. ए आठ प्रकारना लोकनुं केवलज्ञानवडे जोवापणुं सामान्य होवाथी एकपणुं कर्वा छे. (सू०५) लोकनी व्यवस्था, तेनो प्रतिपक्षभूत अलोक छते थाय छे माटे हवे अलोक कहे छे-'एगे अलोए' अनंतप्रदेशात्मकपणुं छते पण तेनी विवक्षा न करवावडे एक अलोक छे. लोक शब्दना निषेधथी अलोक छे पण न जोवापणाए नहि; कारण के केवलज्ञानरूप प्रकाशवडे अलोकनुं पण जोवापणुं छे. शंका-लोकना एक देश(विभाग )ना प्रत्यक्षपणाथी अने तेना देशांतरने पण बाधक प्रमाणनो अभाव होवाथी अमे लोकनी संभावना करीए छीए, परंतु जे आ अलोकनुं देशथी पण अप्रत्यक्षपणुं होवाथी आ अलोक छे एवो निश्चय करवा माटे केम शक्तिमान थशो ? जे कारणथी तमे एकत्रपणाए प्ररूपो छो ? समाधान-अनुमानथी ए प्रमाणे कहीए छीए. ते आ प्रमाणे-लोक, व्युत्पत्तिवाळा शुद्ध पदनु कथन ( नाम) होवाथी विद्यमान विपक्षवाळो छे. अहिं जे वस्तु व्युत्पत्तिवाला शुद्ध शब्दवडे कहेवाय छे, तेनो विक्षेप होय छ एम जाणवा योग्य छे. जेम घटनो [ विपक्ष ] अघट छ तेम व्युत्पत्ति विशिष्ट शुद्ध पदवाच्य लोक छे ते कारणथी विपक्ष सहित छ. जे लोकनो विपक्ष ते १. अहिं प्रसह्य प्रतिषेधथी 'नझ' समास करवो, परंतु पयुदासथी नहि. न लोक: अलोकः । सूत्राणि. ६ ॥२४॥ 288 For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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