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Acharya Si Kalassagarsur Gyarmandie
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पामे, ते आ प्रमाणे-ज्ञानावरण ने दर्शनमोहनीय कर्मना क्षयथी अने उपशमथी (क्षयोपशमथी ), एवी रीते यावन् मनःपर्यवज्ञानने उत्पन्न करे. ते आ-क्षयथी अने उपशमथी (क्षयोपशमथी) (सू० ९८)
टीकार्थः-'दोही'त्यादि० सुगम छे. विशेष ए के 'खएण चेव'त्ति ज्ञानावरणयिना अने दर्शनमोहनीय कर्मना उदयमां प्राप्त थयेल( दलिक )ने क्षय-निर्जरा करवाथी अने उदयमा नहिं प्राप्त थयेलने उपशम करवाथी-विपाकनो अनुभव न करवाथी अर्थात् क्षयोपशमथी एम कलुं थाय छे. यावत् शब्दथी केवलं बोहिं बुज्झेजा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमिज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलं आभिणिबोहियनाणमुप्पाडेज्जा इत्यादि जाणवू. केवल बोधिने प्राप्त करे, मुंडित थईने गृहवासथी अनगारपणाने स्वीकारे (प्रव्रजे), केवल ब्रह्मचर्यवासमा वसे, केवल संयममा यत्न करे, केवल संवरखडे संवृत थाय, केवल मतिज्ञानने उत्पन्न करे एवी रीते यावत् मनःपर्यवज्ञानने उत्पन्न करे. केवलज्ञान तो कर्मना क्षयथी ज थाय छे माटे कडं नथी. अहिंआं जो के बोधि वगेरे सम्यक्त्व अने चारित्ररूप होवाथी मात्र क्षयथी अने उपशमथी (पण) थाय छे, तो पण ए ( सम्यक्त्व अने चारित्र) क्षयोपशमथी पण थाय छे. श्रवण अने आभिनिबोधिकादि तो क्षयोपशमथी ज थाय छे. आ हेतुथी सर्वसाधारण क्षयोपशम वे (क्षायक अने उपशम ) पदवडे कहेल छे. (सू० ९८) बोधि, आभिनिवोधिक (मति) श्रुत अने अवधिज्ञान तो छासठ सागरोपम स्थिति सुधी उत्कर्षथी होय छे. सागरोपमो तो पल्योपमना आश्रयवाळा होय छे. आ कारणथी ते बेनी प्ररूपणा करे छ
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