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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१५१ |
२ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ इंद्रस्य
वर्णनम् ०४ सूत्रम्
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कहेला छे, ते आ-शकेंद्र अने ईशानेंद्र, एम ज सनतकुमार अने माहेंद्र देवलोकने विषे बे इंद्रो कहेला छे, ते आ-सनत्कुमारेंद्र अने माहेंद्र, ब्रह्मलोक अने लांतक देवलोकने विषे बे इंद्रो कहेला छे, ते आ-ब्रह्मेद्र अने लांतकेंद्र, महाशुक्र अने सहस्रार देवलोकने विषे बे इंद्रो कहेला छे, ते आ-महाशकेंद्र अने सहस्रारेंद्र, आनत, प्राणत, आरण अने अच्युत देवलोकने विषे वे इंद्रो कहला छ,त आप्राणतद्र अन अच्युतद्र. महशुक्र कहेला छ. ते आ-प्राणतेंद्र अने अच्युतेंद्र. महाशक अने सहस्रार देवलोकने विपे विमानो वे वर्णवाळा कहेला छे, ते आ प्रमाणे-पीळा अने धोळा ( शुक्ल ), ग्रैवेयक[ नव ]ना देवो ऊंचपणे वे हाथनी अवगाहनावाळा कहेला छे [४].
टीकार्थ:-असुरकुमार वगेरे दश भवनपति निकायोना, मेरुपर्वतनी अपेक्षाए दक्षिण अने उत्तर बे दिशाओना आश्रितपणाए ये प्रकार होवाथी वीश इंद्रो कहेल छे. तेमां चमरेंद्र दक्षिणदिशानो अने बलींद्र उत्तरदिशानो अधिपति छे, एवी रीते सर्वत्र जाणवू. (१). एम ज आठ जातिना व्यंतरनिकायना द्विगुणपणाथी सोळ इंद्रो छे (२). तथा अणपन्त्री वगेरे आठ व्यंतर विशेष [ पेटाभेद ] निकायोना बमणापणाथी सोळ इंद्रो छे. ज्योतिष्कोमा तो असंख्यात् चंद्र अने सूर्य होवा छतां पण जाति मात्रनो आश्रय करवाथी चंद्र अने सूर्य नामना वे ज इंद्रो कहेला छे (३). सौधर्मादि देवलोकना तो दश इंद्रो छे-एवी रीते सर्व मळीने चौसठ इंद्रो थाय छे. देवोना अधिकारथी तेना वसवाना स्थानभूत विमाननी वक्तव्यता कहे छे-'महासुके'त्यादि० सुगम छे. विशेष ए के-हारिद्र एटले पीळा. आ सौधर्मादि देवलोकना विमानोना वर्णोना विषयनो क्रम आ प्रमाणे छसौधर्म अने ईशान देवलोकना विमानो पांच वर्णवाळा छे. श्रीजा अने चोथा देवलोकना विमानो कृष्ण वर्ण सिवाय शेष चार वर्णवाळा छे. पांचमा अने छठा देवलोकना विमानो कृष्ण अने नील वर्ण सिवाय शेष त्रण वर्णवाळा छे. सातमा आठमा
॥ १५१॥
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