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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ******* www.kobatirth.org जंबूमंदरस्स उत्तरणं रम्मए वासे दो पायद्दहा पं० तं० - बहु० जाव नरकंतप्पवायद्दहे चेत्र कंपवायचे, एवं हेरन्नवते वासे दो पत्रायद्दहा पं० तं० - बहु० सुवन्नकूलप्पवाय दहे रुपकूलप्पवाय हे चैत्र, जंबूमंदरउत्तरेणं एखए वासे दो पत्रायदहा पं० बहु० जात्र रत| पत्रायद्दहे चेत्र रत्तावइप्पवायद्दहे चेव, जंबूमंदरदाहिणेणं भरहे वासे दो महानईओ पं० बहु० गंगा चैव सिंधू चैत्र, एव जधा पत्रातदहा एवं णईओ भाणियवाओ, जाव एरखए वासे दो महानईओ पं० - बहुसमतुल्लाओ जाव रत्ता चेत्र रतवती चैत्र ४ । सू० ८८ मूलार्थः – जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर अने दक्षिण दिशाए चुल्लहिमवान अने शिखरी वर्षधर पर्वत विषे वे महाद्रह कह्या छे, ते आ प्रमाणे - बहुसमतुल्य, अविशेष, नानात्वरहित अने एक बीजाने उल्लंघन करता नथी तेमज लंबाई, पहोळाई, ऊंडाई, संठाण अने परिधिवडे समान छे. ते द्रहना नाम- पद्मद्रह अने पुंडरीकद्रह, ते बे द्रहमां त्रे देवीओ, महर्द्धिक यावत् पल्योपमनी स्थिति ( आयुष्य )वाळी वसे छे. ते देवीओना नाम-श्रीदेवी अने लक्ष्मीदेवी. एवी रीते महाहिमवान अने रुक्मी वर्षधर पर्वत विषे मोटा द्रह कह्या छे, ते आ प्रमाणे - बहुसमतुल्य यावत् पूर्वनी माफक कहेवुं. ते बे द्रहना नाम-महापद्मद्रह अने महापुंडरीकद्रह, अने त्यां तेनी ही अने बुद्धि नामनी अधिष्ठात्री देवीओ वसे छे. ए ज प्रमाणे निवध अने नीलवंत २२ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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