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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१२७॥
२ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ हदनद्यादि
स्वरूपम् ८८ सूत्रम्
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पर्वतने विषे तिगिछि अने केशरी नामे वे द्रह छे अने धृति अने कीर्ति नामनी तेनी अधिष्ठात्री देवीओ छे. (१), जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी दक्षिण दिशाए महाहिमवंत वर्षधर पर्वतना महापद्मद्रहथी वे महानदी नीकले छे, तेना नाम-रोहिता अने हरिकांता. एवी रीते निषध वर्षधर पर्वतना तिगिछि द्रहथी वे महानदी नीकळे छे, तेना नाम-हरित अने शीतोदा. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर दिशाए नीलवान वर्षधर पर्वतना केसरीद्रहथी वे महानदी नीकळे छे, तेना नाम-शीता अने नारीकान्ता. ए प्रमाणे रुक्मी वर्षधर पर्वतना महापुंडरीकद्रहथी चे महानदी नीकळे छे, तेना नाम-नरकान्ता अने रूप्यकला छे. (२), जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी दक्षिण दिशाए भरतक्षेत्रमा बे प्रपातद्रह कह्या छे, ते आ प्रमाणे-बहुसमतुल्य, तेना नाम-गंगाप्रपातद्रह अने सिंधुप्रपातद्रह छे. ए प्रमाणे हिमवत क्षेत्रमा बे प्रपातद्रह कह्या छे, ते बहुसमतुल्य छ, तेना नाम रोहित्प्रपातद्रह अने रोहितांशाप्रपातद्रह छे. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी दक्षिण दिशाए हरिवर्ष क्षेत्रमा बे प्रपातद्रह (कुंड) कह्या छे, ते बहुसमतुल्य छे. तेना नाम-हरितप्रपातद्रह अने हरिकान्ताप्रपातद्रह छे. जंबूद्वीपना उत्तर अने दक्षिण दिशाए महाविदेह क्षेत्रमा के प्रपातद्रह कह्या छे. बहुसमतुल्य यावत् शीताप्रपातद्रह अने शीतोदाप्रपातद्रह नामना छे. (३), जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर दिशाए रम्यक्वर्षक्षेत्रमा बे प्रपातद्रह कहेल छे, ते बहुसमतुल्य यावत् पूर्वनी माफक कहेवू. तेना नाम-नरकान्ताप्रपातद्रह अने नारीकांताप्रपातद्रह छे. एवी रीते हैरण्यवत क्षेत्रमा बे प्रपातद्रह कहेल छे, ते बहुसमतुल्य, यावत् पूर्वनी माफक. तेना नामसुवर्णकलाप्रपातद्रह अने रूप्यकलाप्रपातद्रह छे. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर दिशाए ऐवत क्षेत्रमा वे प्रपातद्रह कहेल छे, बहुसमतुल्य यावत् पूर्वनी माफक, तेना नाम-रक्ताप्रपातद्रह अने रक्तवतीप्रपातद्रह छे. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी दक्षिण दिशाए
॥१७॥
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