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श्रीस्थानाङ्गमूत्र
सानुवाद ।। १२६ ।।
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बहुसम० जाव तं०- महापउम दहे चैव महापोंडरीय दहे चैत्र, देवताओ हिरिचेत्र बुद्धिचैत्र, एवं निसढनीलवंतेसु तिगिंछिद्दहे चेत्र केसरिद्दहे चेत्र, देवताओ धिती चेत्र कित्तिच्चैत्र १, जंबूमंदर० दाहि महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ महापउमदहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं०रोहियच्चैव हरिकंतच्चैव, एवं निसढाओ वासहरपव्वताओ तिगिंछिदहाओ दो म० सं०- हरिच्चैव सीओअच्चेव, जंबूमंदर० उत्तरेणं नीलवंताओ वासहरपव्वताओ केसरिद हाओ दो महानईओ पवति तं० - सीता चैव नारिकंता चेव, एवं रुप्पीओ वास हरपव्वताओ महापोंडरीयद्द हाओ दो महानईओ पवहंति, तं० - णरकंता चेव रुप्पकूला चैत्र २, जंबूमंदरदाहिणणं भरहे वासे दो पत्रायद्दहा पं० तं०बहुसम० त० - गंगप्पवातद्द हे चेव सिंधुप्पवायद हे चेव । एवं हिमवए वासे दो पत्रायदहा पं० तं०बहु० तं०-रोहियप्पवातद्द हे चैव रोहियंसपवातद हे चैत्र, जंबूमंदरदाहिणेणं हरिवासे वासे दो पवायद्दहा पं० बहुसम० तं० - हरिपवातद्द हे चेत्र हरिकंतपवातद्द हे चेव, जंबूमंदरउत्तरदाहिणेणं महाविदेहवासे दो पायदा पं० बहुसम० जाब सीअप्पवातद्दह्ने चेत्र सीतोदप्पवायद हे चैत्र ३,
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२ स्थानकाध्ययने
उद्देशः ३ हूदादिस्वरूपम्
८८ सूत्रम्
।। १२६ ॥