________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
*********
www.kobatirth.org
'दो वट्टवेयङ्कपत्र्वय 'ति० पल्य ( पाला ) नो आकार होवाथी बे वृत्तत्वैताढ्य नामथी ते एवा बे पर्वत छे, ने सर्वतः एक हजार योजनना परिमाणवाळा अने रूपामय छे. तेमां मेरुनी दक्षिण दिशाए हैमवत क्षेत्रमां शब्दापाती अने मेरुनी उत्तर दिशाए ऐरण्यवत क्षेत्रमां विकटापाती पर्वत छे. 'तत्थ'त्ति० ते वे वृत्तवैताढ्यमां क्रमवडे स्वाति अने प्रभास नामे देव बसे छे, कारण के त्यां तेना भवन छे. (१), एवी रीते हरिवर्ष क्षेत्रमां गंधापाती अने रम्यक्वर्षमां माल्यवतपर्याय पर्वत छे. त्यां क्रमवडे वे देव ( अरुण अने पद्म) बसे छे. 'जंबू 'इत्यादि० ' पूव्वावरे पासे 'ति पार्श्व शब्दनो प्रत्येकमां ( बन्नेमा ) संबंध होवाथी ( देवकुरुना ) पूर्वना पार्श्व ( पडखा ) मां ने पश्चिमना पड़खामा बे पर्वत छे. ते केवा छे ?एत्थ 'त्ति० प्रज्ञापके उपदेश कराते छते क्रमशः सौमनस अने विद्युत्प्रभ देव कहेल छे. ते केवा छे ? ते वे अवना स्कध समान शरुआतमां नमेल अने छेडे ऊंचा छे. आ कारणथी निषध पर्वतनी नजीकमां चारसो योजन ऊंचा अने मेरुनी पासे तो पांचसो योजनना ऊंचा छे. कहां छे
वासहरगिरितेणं, रुंदा पंचैव जोयणसयाई । चत्तारिसउव्विद्धा, ओगाढा जोयणाण सयं ॥ ५४ ॥ पंचसए उव्विद्धा, ओगाढा पंच गाउयसयाई । अंगुलअसंखभागो, विच्छिन्ना मंदरंतेणं ॥ ५५ ॥ वक्खारपव्वयाणं, आयामो तीस जोयणसहस्सा । दोन्नि य सया णवहिया, छच्च कलाओ चउण्हं पि॥५६
वर्षधरर्वतन समीपे पांचसो योजन विस्तारवाळा, चारसो योजन ऊंचा अने एकसो योजन जमीनमां ऊंडा छे. १ निषधपर्वतनी समोपे सौमनस अने विद्युत्प्रभ अने नीलवान पर्वतनी समीपे गंधमादन अने माल्यवंत आ रीते चार वक्षस्कार पर्वत छे.
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir