SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १२४ ॥ www.kobatirth.org 4 मेरुनी पासे (चार वखारा पर्वतो ) पांचसो योजनना ऊंचा, पांचसो कोशना ऊंडा अने अंगुलना असंख्यातमा भाग मात्र पहोळा छे. चार वक्षस्कार पर्वतोनी लंबाई त्रीश हजार योजन अने छ कळानी छे. 'अवद्ध चंद ति० अपार्द्धचंद्र-कंडक न्यून चंद्रनो आकार अर्थात् हाथीना दांतनी आकृतिना जेवा संस्थानवडे रहेला ते अपार्द्धचंद्रसंस्थानसंस्थित, क्वचित् अर्द्धचंद्रसंस्थानसंस्थितौ ' एवो पाठ छे त्यां अर्द्ध शब्दवडे विभागमात्र विवक्षा कराय छे, परंतु सम ( सरखो ) विभाग नहिं. अने ते बे पर्वतथी देवकुरु अर्द्धचंद्राकार करायेल छे, आ कारणथी ज वक्षाराकार क्षेत्रने करनारा वे पर्वत वक्षार (बखारा ) पर्वत कहेवाय छे. 'जंबू' इत्यादि० वर्णन तेमज जाणवुं. विशेष ए के - उत्तरकुरुक्षेत्रमा पश्चिमनी पासे गंधमादन अने पूर्वनी पा माल्यवान वखारापर्वत छे. (२), ‘दो दीहवेयड' त्ति० वैताढ्यनो निषेध करवा माटे ' दीर्घ ' शब्दनुं ग्रहण करेल छे, वेय शब्दनो वैताढ्य अथवा विजयाड्ढ संस्कार थाय छे. ते बे पर्वत भरत अने ऐरवतना मध्य भागमां पूर्व अने पश्चिमथी लवणसमुद्रने स्पर्श करीने रहेल छे. ते बन्ने पच्चीश योजनना ऊंचा छे, पच्चीश गाउ अंडा छे, पच्चीश योजन पहोळा छे, आयत संठाणवाळा छे, सर्व रूपामय छे अने बने पडखाथी बहार कांचनमंडनथी अंकित छे. कां छे पणुवी उवि पन्नासं जोयणाण विच्छिन्नो । वेयड्डो रययमओ, भारहखेत्तस्स मज्झमि ॥५७॥ आ गाथानो अर्थ उपर कहेल छे. ' भारहए ण ' मित्यादि० वैताढ्य पर्वतमा पश्चिम भागमां तमिस्रा गुफा पच्चास योजन लांबी, बार योजन पहोळी अने आठ योजन ऊंची छे. आयत चतुरस्र संस्थानवाळी, विजयद्वार प्रमाणे द्वारवाळी (आठ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ******* २ स्थान काध्ययने उद्देशः ३ वर्षधरादिस्वरूपम् ८७ सूत्रम् ॥ १२४ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy