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अने सर्वथी-संपूर्ण शरीरनुं वैक्रिय करवावडे विकुर्वणा करे छे. (३), 'परियारेइ' ति० देशथी मनोयोग वगेरेमांथी कोइपण एक योगवडे अने सर्वथीत्रण योगवडे मैथुनने सेवे छे. (४), देशथी जीभना समभाग वगेरेथी अने सर्वथी समस्त तालु वगेरे स्थानवडे भाषाने बोले छे. (५), देशथी मात्र मुखवडे अने सर्वथी ओज आहारनी अपेक्षाए ( सर्व आत्मप्रदेशवडे) आहार करे छे. (६), आहारने ज परिणमावे छे. खल, रसना विभागवडे भक्ताशय ( होजरी ) ना भागने बरोळ वगेरेवडे रुंधवाथी देशथी अने प्लीह वगेरेथी रुंधेल न होवाथी सर्वथी. (७), देशथी हाथ वगेरे अवयववडे अनुभवे छे अने सर्वथी अवयववडे आहार संबंधी परिणामने प्राप्त थयेल पुद्गलोने इष्ट अने अनिष्ट परिणामथी अनुभवे छे. (८), आहार करेला, परिणमेला अने अनुभवेला आहारना पुद्गलोने देशथी अपान ( गुदास्थान ) वगेरेथी अने सर्वथी संपूर्ण शरीरखडे प्रस्वेद ( परसेवा ) नी जेम निर्जरे छे - त्याग करे छे. (९) आ चौद सूत्रो विवक्षित विषयवस्तुन अपेक्षाए लेवा. तेमां देश अने सर्वनी योजना आ प्रमाणे समजवी. जेम देशथी पण विवक्षित शब्दोमांथी केटलाएक शब्दोने सांभळे छे अने सर्वथी समस्तपणे वधा शब्दोने सांभळे छे (१), एवी रीते रूप वगेरेने पण देशथी अने सर्वथी जाणी लेबुं (५), तथा (शब्दादि) विवक्षित वस्तुने देश अथवा सर्वथी प्रकाशे छे (६), विशेष प्रकाशे छे (७), एवी रीते विकुर्वणा संबंधी वस्तुने विकुर्वणा करे छे (८), परिचारणा योग्य स्त्रीशरीरादि प्रत्ये परिचारणा सेवे छे (९), कहेवा योग्य शब्दनी अपेक्षाए देशथी भाषाने बोले छे (१०), सर्वथी भोजन योग्य वस्तुने खाय छे (११), आहरने परिणमात्रे छे (१२), वेदवायोग्य कर्मने अनुभवे छे (१३), देशथी अथवा सर्वथी एवी ते निर्जरे पण छे. (१४), देश अने सर्ववडे सामान्यथी सांभळकुं वगेरे कघुं, विशेष विवक्षामां देवोनुं प्रधानपणुं होवाथी
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