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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद
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शब्दोने कयास इन्द्रियोवडे सर्वथी सांभाका सथी-न हणायेल श्रा, दसेणवित्ति
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वगेरेना ज्ञानने विषे वे प्रकार कहे छ-'दोही'त्यादि० आ चार सूत्रो सुगम छे. विशेष कहे छ-'विउब्बिएणं'त्ति० करेल वैक्रिय। शरीरवडे जाणे-देख छे. (१-४). ज्ञानना अधिकारमा ज आ बीजो प्रकार कहे छ 'दोही'त्यादि० पांच सूत्रो, 'देसेणवित्ति. देशधी-एक काननो उपघात (विनाश) होते छते एक कानथी सांभळे छे, अथवा सर्वथी-न हणायेल श्रोत्रीद्रयवाळो, अथवा जे संभिन्नश्रोत नामनी लब्धिवाळा (मुनि) ते बधी इंद्रियोबडे सर्वथी सांभळे छे. आ हेतुथी सर्वथी कथन कराय छे. (१), 'एवमिति जेम देश अने सर्वथी शब्दोने कह्या तेम रूपादिने पण जाणी लेवा. विशेष एके-जीभना देशनो प्रसुप्त्यादि दोषवडे | उपघात ( हरकत ) थवाथी देशथी आस्वादे (खाय ) छे एम जाणवू. (२-५). शब्दश्रवण वगेरे जीवपरिणामो कह्या, तेना प्रस्तावथी तेना परिणामांतरोने कहे छे-'दोहीत्यादि० नव सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-अवभासते-खद्योत( खजुआ )नी माफक देशथी दीपे छे अने दीवानी माफक सर्वथी दीपे छे. अथवा देशथी फडकावधिज्ञानी जाणे छे अने सर्वथी अभ्यंतरावधिज्ञानी जाणे छे. (१), 'एवमिति० देश अने सर्वथी विशेषतः दीपे छे. (२), देशथी हाथ वगेरेनुं वैक्रिय करवावडे
१. जीभ जड घइ जवा वगेरेथो ज्ञानतंतु क्रियारहित थाय छे. २. ओरडाना जाळियाथी अंतरित रहेल दीपकनो प्रभाना नोकळपानी समान फडकावधिज्ञान कहेवाय छे. ते फहुको एक जीवने क्षयोपशमनी विचित्रताथो संख्याता अथवा असंख्याता होय छे. आ फडको, मनुष्य अने तिथंच अवधिज्ञानीने होय छे. ३ जीवने सर्वतः अंतररहित एक सरखं ज्ञान होय ते अभ्यंतरावधि जाणj. विशेष निजातुर विशेषावश्यकनी टोका जोवी.
काध्ययने उद्देशः २ समुद्घातवैक्रियेतरतोवधिः देशसर्वतः शब्दाद्या ८० सूत्रम्
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