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देशथी देव शब्दोने सांभळे छे अने सर्वथी देव शब्दोने सांभळे छे. (१) यावत् निर्जरे छे. (१४), मरुत् (लोकांतिक देव विशेष) देवो प्रकारे कहेला छे, ते आ प्रमाणे- एक शरीरवाळा ( कार्मण शरीरवाळा ) अने वे शरीरवाळा ( कार्मण ने वैय शरीरवाळा ) (१), एवी रीते किन्नरो (२), किंपुरुषो (३), गंधर्वो (४), नागकुमारो (५), सुपर्णकुमारो (६), अग्रिकुमारो (७) अने वायुकुमारो बब्बे प्रकारे छे. (८). देवो बे प्रकारे कहेला छे, ते आ प्रमाणे- एक शरीरवाळा अने बे शरीरवाळा. ( सू० ८०)
टीकार्थ :- 'दोही 'त्यादि० चार सूत्रनी व्याख्या करतां कहे छे के आत्मगत ये स्थान - प्रकारवडे जीव अधोलोकने अवधिज्ञानवडे जाणे छे अने अवधिदर्शनवडे देखे छे. ' समवहतेन' वैक्रियसमुद्घातगत स्वभाववडे अथवा अन्य समुद्घातगत स्वभाववडे, अने बीजी रीते समुद्घात न करवारूप स्वभाववडे. ए ज व्याख्या करे छे' आहोही 'त्यादि० जे प्रकारे अवधि छे जेने ते यथावधि (प्राकृत शैलीथी आदिमां दीर्घपणुं करेल छे) अथवा परमावधिथी अधोवत (न्यून) अवधि छे जेने ते अधोअवधि आत्मा-नियत क्षेत्र विषयवाळो अवधिज्ञानी क्यारेक समवहत अने क्यारेक असमवहत एवी रीते वे स्वभाववडे जाणे - देखे छे. ' एवमित्यादि ० ' एवमि 'ति० जेम अधोलोक समवत अने असमTहत वे प्रकारवडे अवधिज्ञानना विषयपणाए कहेल छे. एवी रीते तिर्यग्लोक वगेरे पण जाणवा. तिर्यग्लोक सूत्र, ऊर्ध्वलोक सूत्र अने केवलकल्पसूत्र सुगम छे. विशेष कहे छे- केवल परिपूर्णरूप पोताना कार्यना सामर्थ्यथी कल्प - केवलज्ञाननी जेम अथवा परिपूर्णपणाए केवलज्ञान सदृश, अथवा केवलकल्प - सिद्धांतशैलीए परिपूर्ण लोक (चौद राजलोकरूप) ने जाणे छेदेखे छे (२-४ ). वैक्रियसमुद्घात पछी वैक्रिय शरीर होय छे, आ हेतुथी वैक्रियशरीरनो आश्रय करीने अधोलोक
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