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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशथी देव शब्दोने सांभळे छे अने सर्वथी देव शब्दोने सांभळे छे. (१) यावत् निर्जरे छे. (१४), मरुत् (लोकांतिक देव विशेष) देवो प्रकारे कहेला छे, ते आ प्रमाणे- एक शरीरवाळा ( कार्मण शरीरवाळा ) अने वे शरीरवाळा ( कार्मण ने वैय शरीरवाळा ) (१), एवी रीते किन्नरो (२), किंपुरुषो (३), गंधर्वो (४), नागकुमारो (५), सुपर्णकुमारो (६), अग्रिकुमारो (७) अने वायुकुमारो बब्बे प्रकारे छे. (८). देवो बे प्रकारे कहेला छे, ते आ प्रमाणे- एक शरीरवाळा अने बे शरीरवाळा. ( सू० ८०) टीकार्थ :- 'दोही 'त्यादि० चार सूत्रनी व्याख्या करतां कहे छे के आत्मगत ये स्थान - प्रकारवडे जीव अधोलोकने अवधिज्ञानवडे जाणे छे अने अवधिदर्शनवडे देखे छे. ' समवहतेन' वैक्रियसमुद्घातगत स्वभाववडे अथवा अन्य समुद्घातगत स्वभाववडे, अने बीजी रीते समुद्घात न करवारूप स्वभाववडे. ए ज व्याख्या करे छे' आहोही 'त्यादि० जे प्रकारे अवधि छे जेने ते यथावधि (प्राकृत शैलीथी आदिमां दीर्घपणुं करेल छे) अथवा परमावधिथी अधोवत (न्यून) अवधि छे जेने ते अधोअवधि आत्मा-नियत क्षेत्र विषयवाळो अवधिज्ञानी क्यारेक समवहत अने क्यारेक असमवहत एवी रीते वे स्वभाववडे जाणे - देखे छे. ' एवमित्यादि ० ' एवमि 'ति० जेम अधोलोक समवत अने असमTहत वे प्रकारवडे अवधिज्ञानना विषयपणाए कहेल छे. एवी रीते तिर्यग्लोक वगेरे पण जाणवा. तिर्यग्लोक सूत्र, ऊर्ध्वलोक सूत्र अने केवलकल्पसूत्र सुगम छे. विशेष कहे छे- केवल परिपूर्णरूप पोताना कार्यना सामर्थ्यथी कल्प - केवलज्ञाननी जेम अथवा परिपूर्णपणाए केवलज्ञान सदृश, अथवा केवलकल्प - सिद्धांतशैलीए परिपूर्ण लोक (चौद राजलोकरूप) ने जाणे छेदेखे छे (२-४ ). वैक्रियसमुद्घात पछी वैक्रिय शरीर होय छे, आ हेतुथी वैक्रियशरीरनो आश्रय करीने अधोलोक For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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