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भीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१०५॥
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पं० तं०-एगसरीरे चेव बिसरीरे चेव । सू० ८० । बिट्ठाणस्स बीओ उद्देसओ सम्मत्तो २-२॥
मूलार्थः-वे स्थानवडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छे, ते आ प्रमाणे-समुद्घात करवारूप स्वभाववडे आत्मा - अधोलोकने जाणे छे-देखे छे, समुद्घात न करवारूप स्वभाववडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छे. यथावधिज्ञानी समु
द्घात् करवावडे अने समुद्घात न करवारूप स्वभाववडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छे. (१), एवी रीते तिर्यग्लोकने (२), ऊर्ध्वलोकने (३) अने परिपूर्ण चौद राजलोकने जाणे-देखे छे. (४). बेस्थानवडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छे,ते आ प्रमाणे-करेल वैक्रिय शरीररूप स्वभाववडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छ, न करायेल बैंक्रिय शरीररूप स्वभाववडे आत्मा अधोलोकने जाणे छे-देखे छे. यथावधिज्ञानी कृतवैक्रिय शरीर अने अकृतवैक्रियशरीररूप स्वभाववडे आत्मा अधोलोकने जाणे हे-देखे छे. (१), एवीरीते तिर्यगलोकने (२), ऊर्ध्वलोकने (३) अने परिपूर्ण चौद राजलोकने जाणे छे-देखे छे. (४). बे स्थानवडे आत्मा शब्दोने सांभळे छे, ते आ प्रमाणे-देशथी आत्मा शब्दोने सांभळे छे अने सर्वथी आत्मा शब्दोने सांभळे छे. (१), एवी रीते देशथी अने सर्वथी रूपोने देखे छे.(२), गंधोने सूंघे छे. (३), रसोने आस्वादे छ (४), अने स्पोंने अनुभवे छे. (५) बे स्थानवडे | आत्मा दीपे (प्रकाशे ) छे, ते आ प्रमाणे-देशथी आत्मा दीपे छे अने सर्वथी दीपे छे.(१), एवी रीते आत्मा देशथी अने सर्वथी विशेष दीपे छे. (२), विकुर्वणा करे छे. (३), परिचारणा (मैथुन) सेवे छे. (४), भाषाने बोले छे. (५), आहार करे छे. (६), परिणामने पमाडे छे. (७), अनुभवे छे.(८), अने निर्जरा करे छे-त्याग करे छे. (९).बे स्थानवडे देव शब्दोने सांभळे छे, ते आ प्रमाणे
२ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ समुद्घातवैक्रियेतरतोऽवधिः देशसर्वतः शब्दाद्याः ८०सूत्रम्
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