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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ स्थानका श्रीस्थानानपत्र सानुवाद ॥ १०७॥ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx तेओने आश्रयीने ते (शब्दादि) कहे छ:-'दोही' त्यादि० ए पण विवक्षित शब्दादि विषयनी अपेक्षाए चौद सूत्र देशथी अथवा सर्वथी लेवा. आ हमणा ज कहेल भावो शरीर होय तो ज संभवे छे, आ कारणथी देवोर्नु प्रधानपणुं होवाथी देवोना ज शरीरनु निरूपण करवा माटे कहे छे-'मरुए' त्यादि० आ आठ सूत्र सुगम छे. विशेष कहे छे-मरुतदेवो लोकांतिक देव विशेष छे. का छे के-सारस्वता१दित्य २ वन्य ३रुण ४ गद्दतोय ५ तुषिता ६ व्याबाध ७मरुतो८ अरिष्ठा९श्चेति (तत्वा० अ०४, सू० २६) ते देवो एक शरीवाळा होय छे, कारण के विग्रहगतिमां कार्मण शरीर छे, त्यारपछी वैक्रियभावथी ये शरीरवाळा होय छे, बन्ने शरीरनो समाहार-एकत्रीभूत बे शरीर, ते छे जेओने ते वे शरीरवाळा, अथवा भवधारणीय ( मूळ )ज शरीर ज्यारे होय त्यारे एक शरीर, ज्यारे उत्तरवेक्रिय करे त्यारे बे शरीर होय छे. किन्नर, किंपुरुष अने गंधर्व ए त्रण व्यंतरो छे अने नागकुमारादि चार भवनपतिओ छे. अमुक संख्यामां भेदनुं ग्रहण करेल छे ते बीजा भेदोने बंतावनार छे, परंतु बीजानो निषेध करवा माटे नथी. सर्व जीवोने विग्रहगतिमां एक शरीरपणानी अने विग्रहगति सिवायना समयमां बे शरीरपणानी प्राप्ति होवाथी सामान्यतः कहे छे-'देवा दुविहे 'त्यादि० सुगम छे (सू०८०) ॥बीजा स्थानना बीजा उद्देशानी टीकानो अनुवाद समाप्त ॥ उद्देशः२ समुद्घातवैक्रियेतरतोऽवधिः देशसर्वतः शब्दाद्याः ८० सूत्रम् KXXXXXXXXXXXX X॥१०७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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