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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आ गाथाना भावार्थ कल छे. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पण जघन्यथी अंतर्मुहूर्त्त स्थितिवाळु होवाथी अने उत्कृष्टथी छाशठ सागरोपमथी कंईक अधिक स्थितिवाळं होवाथी प्रतिपाती छे. जो के क्षपक ( क्षायिक सम्यक्त्वना प्रारंभकं ) ने समयग्दर्शनना दलिक छेला पुद्गलना अनुभवरूप ( एक समयनी स्थितिवाळं ) वेदक कहेवाय छे, ते (वेदक) पण क्षायोपशमिकनो भेद होवाथी प्रतिपाती ज छे. तथा मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व अने सम्यक्त्वमोहनीयना क्षयथी क्षायिक सम्यक्त्व कहेवाय छे. भाष्यकार कहे छे: खीणे दंसणमोहे, तित्रिभिवि भवनियाणभूयंभि । निप्पञ्चवायमउलं, सम्मत्तं खाइयं होइ ॥ ९ ॥ अनंतानुबंधी चतुष्कना क्षय क बाद संसारना मूल कारणभूत त्रण प्रकारे पण दर्शनमोह क्षय थये छते अत्यंत विशुद्ध, अतुल्य, क्षायिक सम्यक्त्व होय छे. क्षायिक सम्यकूत्व क्षायिक भावरूप होवाथी अप्रतिपाती ज छे. आ कारणथी ज सिद्धपणामां पण साथै प्रवर्ते छे. (३-४). 'मिच्छादंसणे' इत्यादि - अभिग्रह कुमतनो स्वीकार छे मां ते अभिग्राहक मिथ्यादर्शन जाणवुं. (५). 'अभिग्गहिये' त्यादि - अभिग्रहिक मिथ्यादर्शन, सम्यक्त्वन प्राप्ति थये छते जेनो अथाय छे ते सपर्यवसित, अभव्यने सम्यक्त्वनी प्राप्ति न होवाथी अपर्यवसित- अंतरहित छे. ते मिथ्यात्व मात्र पण अतीत १. अनंतानुबंधो चतुष्क, मिथ्यात्व अने मिश्रमोहनीयनो क्षय करी, छेल्ले सम्यक्त्वमोहनीयने खपावता एक समय स्थितिक चरम पुद्गलना वेदनरूप अंश ते ज वेदकसम्यक्त्व कहेवाय छे. २. अधिगम सम्यक्त्वना पण प्रतिपाती आदि वे भेद जाणवा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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