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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद 1160 11 www.kobatirth.org कपायनो उदय थये छत उपशम सम्पक्त्वथी पडता जीवने जे सास्वादन सम्यक्त्व कहेवाय छे ते औपशमिकं ज छे. ते सास्वादन पण प्रतिपाती ज छे, कारण के सास्वादननुं जघन्यथी समय मात्र अने उत्कृष्टथी तो छ आवलिका प्रमाण छे. तथा अहिं जे मिथ्यादर्शनना जे दलिक उदयमां आवेल ते क्षय पामेल अने जे उदयमां न आवेल ते उपशांत थयेल. उपशांतस्तंभीभूते उदयविशिष्ट अने मिथ्या स्वभाव दूर करेलुं होय ते अहिं अनुभवमां आवेल एवा क्षयोपशम स्वभावने क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहेवाय छे. शंका-उपशम समकितमां पण क्षय अने उपशम बन्ने स्वभाव होय छे तेवी ज रीते क्षायोपशमिमां पण बन्ने छे, तो आ वे समकितमां भेद शो ? समाधान आ ज विशेष छे. अहिं क्षायोपशमिकमां जे दलिक (शुद्ध पुंजरूप) वेदाय छे ते दलिक औपशमिकमां वेदाता नथी. बळी अहिं क्षायोपशमिकमां पूर्व जे दलिक उपशांत करेल छेते समय समय प्रत्ये उदयमां आवे छे, वेदायें छे अने क्षय थाय छे. औपशमिकमां तो उदयनो अटकाव मात्र छे. भाष्यकार कहे छे: मिच्छतं जमुन्नं तं खीणं अणुइयं च उवसंतं । मीसीभावपरिणयं, वेइज्वंतं खओवसमं ॥ ८ ॥ १. उपशमसमकितथी पडता जोवने जे सम्यकृत्वनो आस्वाद होय छे ते उपशमना ज वमन सदृश होवाथो उपशमनो ज भेद छे. २. मिथ्यात्व अने मिनपुंननी अपेक्षाए उदयनो अटकाव ३. सम्यकूत्वपुंजनो अपेक्षाए मिथ्यास्वभाव दूर कराय छे. ४. क्षायोपशमिकमां सम्यकृत्वपुंजना दलिक, विपाकोदयश्री अने मिथ्यात्वदलिक प्रदेशोदयथी वेदाय छे. औपशमिकमां कशुं वेदन थतुं नथी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ स्थानकाध्ययने | उद्देशः १ सम्यग्मि ध्यादर्शनं ७० सूत्रस् ॥ ८० ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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