________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
EXI
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥८१॥
X
XXXXXXXXXXX
XXXKAKKXXXXXXXXKAKKKX
(भृत )कालीन नयनी अनुवृत्तिवडे अभिग्रहिक एवो व्यपदेश कराय छे. (६). अनभिग्रहिक मिथ्यादर्शन, भव्य जीवने |सार स्थानकासपर्यवसित अने अभव्यने अपर्यवसित होय छे. आ कारणथी ज कहे छ:-"एवं अणभी'त्यादि (७). दर्शननुं स्वरूप __ध्ययन का, हवे ज्ञान- स्वरूप कहे छे-'तत्र दुविहे नाणे' ए आदि सूत्रथी आरंभीने 'आवस्सयवतिरित्ते दुविहे' इत्यादि उद्देशः१ छल्ला सूत्र पर्यंत २३ सूत्रो कहे छे
प्रत्यक्षदविहे नाणे पं० २०-पच्चक्खे चेव परोक्खे चेव (१), पञ्चक्खे नाणे दुविहे पं० तं०-केवल- | परोक्षज्ञानम नाणे चेव णोकेवलनाणे चेव (२), केवलणाणे दुविहे पं० तं०-भवत्थकेवलनाणे चेव सिद्धकेवल
७१ सूत्रम् णाणे चेव (३), भवत्थकेवलनाणे दुविहे पं० तं०-सजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव (४), सजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पं० २०-पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव (५). अहवा चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणे चेव (६), एवं अजोगिभवत्थकेवलनाणेऽवि
१. अभिग्रहिक मिश्यात्व, संज्ञी जीवोने न होय छे, ते कारणथो अभिग्रहिक मिथ्यात्व अपर्यवसित-अंतरहित संभवी शके नहि माटे भूतकालमा थयेल अभिग्रहिक मिथ्यात्वनी प्रतिनी अनुवृत्तिथी अपर्यवसित कहेल छे, अर्थात् अतोत कालनो वर्तमानकालमा उपचार करायेल छे.
॥८१॥
For Private and Personal Use Only