SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था नागसूत्र सानुवाद ॥५१॥ XXKXXXXXX १. स्थाना ध्ययने स्थावराणां जीवत्वम् ५१ सूत्रम् KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX गाथाना पूर्वार्द्धनो भावार्थ उपर कहेल छे. (९५) हवे वनस्पतिओनुं विशेषताए सचेतनपणुं भाष्यनी गाथाओवडे कहे छजम्मजराजीवणमरण-रोहणाहारदोहलामयओ।रोगतिगिच्छाईहि य,णारिव्व सचेयणा तरवो ॥९६॥ छिक्कप्परोइआ छिक्कमित्त-संकोयओ कुलिंगिव्व। आसयसंचाराओ, वियत्त ! वल्ली वियाणाहि॥९७॥ सम्मादयोव सावप्प-बोहसंकोयणादिओऽभिमया। बउलादयो य सद्दा-इविसयकालोवलंभाओ॥९८॥ जन्म, जरा, जीवन, मरण, क्षतसंरोहण (घानुं रुझाबु ), आहार, दोहंद-दोहळो, रोग अने चिकित्सावडे स्त्रीनी माफक वृक्षो चेतन सहित छे. (९६) स्पृष्टप्ररोदिका-रीसामणी विगेरे वनस्पतियो क्रीडा वगेरे जंतुओनी जेम स्पर्श मात्रथी संकोचने पामे छे. हे व्यक्त ! तुं जाण के वेलडी वगेरे स्वरक्षण माटे वाड, वृक्ष अने कोटडी वगेरे उपर आश्रय लेवाना हेतुथी चडे छे. ( ९७ ) शमी ( खीजडा) वगेरे वृक्षो, मनुष्यनी माफक निद्रा, जागवू अने संकोच वगेरेने पामे छ एम स्वीकारेल छे. बकुल, चंपक वगेरे वृक्षो विषयोना-संगीत, मदिरानो गंडूष (कोगळो), सुंदर स्त्रीना चरणवडे ताडनादिनो, वसंतादि ऋतुमां उपभोगनो साक्षात्कार करावे छे, माटे वनस्पति सचेतन छे. (९८)'एगा भवसिद्धिये त्यादि भविष्यतीति भवाःभविष्यकाळमां थनारी सिद्धि-निवृत्ति छे जेओने ते भवसिद्धिको-भव्यो, तेनाथी विपरीत ते अभवसिद्धिको-अभव्यो जाणवा. १.वियत्त ! आ शब्द व्यक्त नामना गणधरने आमंत्रणार्थे प्रभुर कहेल छे. २ कुष्मांडी-कोळ अने विनोरं वगेरे फळवाळी वनस्पतिने दोहद थाय छे. RREKXxx P ॥५१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy