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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शंका- जीवपणुं समान छते भव्य अने अभव्यमां विशेष भेद शो छे ? समाधान - स्वभावथी भेद करायेल छे. द्रव्यत्वनी अपेक्षाए जीव अने आकाशनी समानता छे तो पण स्वभावथी भेद छे. दव्वाइते तुले, जीवनभाणं सभावओ भेदो । जीवाऽजीवाइगओ, जह तह भव्वेयरविसेसो ॥९९॥ जीव अने आकाशनुं द्रव्यत्व, सच्च, प्रमेयत्वादिपणाए तुल्य रूप होवा छतां पण स्वभावथी भेद छे, एटले जेम आकाश अजीव छे अने चेतन सजवि छे तेम भव्य अने अभव्यनो पण भेद स्वभावथी जाणवो. भव्य अने अभव्यवडे विशेषित-भिन्न अन्य दंडक को. 'एगा समदिट्टियाण' मित्यादि सम्यग् - यथार्थ दृष्टि (दर्शन), तो प्रत्ये रुचि छे जेओने ते सम्यग् - दृष्टि जीवो, मिथ्यात्वमोहनीय कर्मना क्षय, क्षयोपशम अने उपशमथी थाय छे. तथा मिथ्या विपर्यासवाळी, तीर्थंकरोवडे कवाल पदार्थसमूहनी श्रद्धा रहित दृष्टि-दर्शन (श्रद्धान) छे जेओने ते मिथ्यादृष्टि जीवो, मिथ्यात्वमोहनीय कर्मना उदयथी जिनवचननी अरुचिवाळा होय छे. कछु छे के:-" सूत्रोक्त एक अक्षरने पण न रुचवाथी मनुष्य मिथ्यादृष्टि थाय छे, तीर्थंकरोए कहेलुं सूत्र तेओने तो चोक्कस अप्रमाण छे. " तथा कंडक यथार्थ अने कंक मिथ्या छे दृष्टि जेओनी ते सम्यग् मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) जीवो, जिनोक्त भावो प्रत्ये उदासीन होय छे. आ गंभीर संसाररूप समुद्रना मध्यमां वर्ततो जीव, अनाभोग ( स्वभावतः ) थयेल पर्वत संबंधीना पत्थर घोलने समान यथाप्रवृत्तिकरणवडे प्राप्त थयेला अंतः कोडाकोडी साग १. नदीना पाणीमां पत्थर आडोअवळो भटकावाथी घसाय हे ते नदीघोलन न्याय कहेवाय छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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