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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ सप्तम अध्याय ॥ पान ५७८ ॥ बहुरि विनाविचारे विनाप्रयोजन अधिकी क्रिया करना, फिरना, डोलना, कूदना इत्यादि सो असमीक्ष्याधिकरण है । इहां मन वचन काय तीनीकी क्रिया विनाप्रयोजन न करै सो जाननी । बहुरि खाने पीने की सामग्री तथा वस्त्र आभूषण आदि निःप्रयोजन बहुत भेले करने, सो उपभोगपरिभोगानर्थक्य है । ऐसें ए पांच अतीचार अनर्थदंडविरतिके हैं | आगे सामायिक अतीचार कहै हैं- ॥ योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३३॥ याका अर्थ - योग मन वचन कायके कर्म, तिनका बुरा चितवन प्रवर्तन करना, तीनि तौ ए अर सामायिकके विषै अनादर, क्रियापाठ आदिका भूलना ए पांच अतीचार सामायिकके हैं। तहां योगका स्वरूप तौ पहले कह्या सोही । ताका दुष्प्रणिधान कहिये खोटी प्रवृत्ति करना, सो ए तीनिप्रकार, वचनका दुष्प्रणिधान कायका दुष्प्रणिधान मनका दुष्प्रणिधान । इहां भावार्थ ऐसा, जो, सामायिक करे तब सामायिक में तौ मनवचन काय की प्रवृत्ति न रहै अर अन्यकार्य में प्रवृत्ति करै, सो अतिचार है । बहुरि अनादर कहिये सामायिकविषै उत्साह नाहीं, जैसे तैसे काल पूरा करे, सो है । बहुरि स्मृत्यनुपस्थान कहिये पाठक्रिया यादि न रहै भुलि जाय, For Private and Personal Use Only be Shirishise
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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