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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचदंकृता । सप्तम अध्याय ॥ पान ५६६ ।। बहुरि सातमी प्रतिमा ब्रह्मचर्य है । सो इहां वस्त्रीकाभी त्याग नववाडसहित शुद्ध अतीचाररहित होय है । बहुरि आठमी प्रतिमा आरंभत्याग है। तहां वणिज आदि आरंभका कछू कुटुंब सामिल रहने में दोष अतीचार उपजै तथा ताकाभी अतीचाररहित शुद्ध त्याग होय है। बहुरि नवमी प्रतिमा परिग्रहत्याग है। तहां पहलै कछु अल्पपरिग्रह रुपया पईसासंबंधी ममत्व था तिसकाभी इहां त्याग है अतीचार न लगावै है। इहांताई मध्यमश्रावक है। बहुरि दशमी प्रतिमा अनुमतित्याग है, सो नवमीमें कुटुंब सामिल भोजनादिक करै था, तामें भला माननेका दोष उपजै था, इस दशमी प्रतिमामें ताकाभी त्याग है, घरका तथा अन्य कोई बुलावै ताकै भोजन करै, घरतें उदासीनवृत्ति रहै, कदाचित् घर बैठे कदाचित् मठ मंडप चैत्यालय आदिविर्षे बैठि निर्ममत्व रहै । बहुरि ग्यारमी प्रतिमामें घरका त्याग करि मुनिकीज्यों मंडपमें रहै है, याका नाम उद्दिष्टत्यागप्रतिमा है । तहां अपने निमित्त कीया भोजनादिकुंभी नाहीं अंगीकार करै है, यह | उत्तमश्रावक है, एक कोपीनमात्र वस्त्र राखै है । बहुरि याका दूसरा भेद क्षुल्लक है, ताका स्वरूप श्रावकाचारतें जानना । बहुरि सारीही प्रतिमानिका स्वरूपका भावार्थ इहां संक्षेप लिख्या है। हा सो विशेषकथन श्रावकाचारग्रंथनितें जानना ॥ आगें चशब्दकरि समुच्चय कीया कहै हैं KAPORNFOPANSARAMSARPANNAPKINNAPARAGARPORApaper For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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