SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३७७ ॥ सो कैसें ? पहले स्वर्गवि सुधर्मा नाम सभा है सो यहु सभा जामें होय ताका नाम सौधर्मकल्प कहियें । इहां अस्ति अर्थमें अण् प्रत्यय जानना । बहुरि इस कल्पके साहचर्यते इन्द्रकाभी नाम सौधर्म जानना । बहुरि ईशान ऐसा नाम इन्द्रका स्वभावहीतें है । सो ईशान इन्द्रनिका निवास सो ऐशानकल्प है । इहां निवास अर्थविर्षे अण् प्रत्यय जानना। ताके साहचर्यते इन्द्रकाभी नाम ऐशान है। बहुरि सनत्कुमार इन्द्रका नाम स्वभावहीतें है। ताका निवास जो कल्प ताका नाम सानत्कुमार है । इहांभी निवास अर्थविर्षे अण् प्रत्यय है । ताके साहचर्यते सानत्कुमार नाम | इन्द्रका होय है । बहुरि महेन्द्र ऐसा नाम इन्द्रका स्वभावहीतें है। ताका निवास जो कल्प ताका नाम माहेन्द्र है। यहांभी निवास अर्थविर्षे अण् प्रत्यय है । ताके साहचर्यतेभी इन्द्रका नाम माहेन्द्र है । ऐसेंही ब्रह्म ब्रम्होत्तर आदि कल्पका तथा इन्द्रका नाम जानना । बहुरि उपरि उपरि दोयदोयका संबंध आगमकी अपेक्षातें जानना। तहां पैला तो सौधर्म ऐशान ए दोय कल्प हैं। इनके उपरि सानत्कुमार माहेन्द्र ए दोय हैं। इनके उपरि ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर ए दोय हैं। इनके उपरि लांतव कापिष्ट ए दोय हैं। इनके उपरि शुक्र महाशुक्र ए दोय हैं। इनके उपरि शतार सहस्रार ए दोय हैं। इनके उपरि आनत प्राणत ए दोय हैं। इनके उपरि आरण अच्युत ए दोय हैं। इहां कल्पका For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy