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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३७८ ॥ युगलका उपरि उपरि दोयदोय कहना अंतके दोय युगलनिकें जुदी विभक्ती करी, समास न किया, तातें जाना जाय है । बहुरि नीचले च्यारि कल्पविर्षे बहुरि उपरिके च्यारि कल्पविर्षे तो च्यारि | च्यारि इन्द्र जानने । बहुरि बीचके आठ कल्पनिविर्षे च्यारिही इन्द्र जानने । सो ऐसें हैं- सौधर्म ऐशान सानत्कुमार माहेन्द्र इन च्यारिवि च्यारि इन्द्र । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर इन दोयमें एक ब्रह्म नाम इन्द्र है । लांतव कापिष्ट इन दोयमें एक लांतव नाम इन्द्र । शुक महाशुक्र इन दोयमें एक शुक्र नाम इन्द्र । शतार सहस्रार इन दोयमें एक शतार नाम इन्द्र । आनत प्राणत आरण अच्युत इन च्यारिमें च्यारि इन्द्र हैं । ऐसें कल्पवासीनिके बारह इन्द्र हैं ।। बहुरि लोकनियोगके उपदेशतें तत्त्वार्थवार्तिकविर्षे इन्द्र चौदहभी लिखे हैं । तहां बारह स्वर्गमें तौ बारह अर ऊपरके च्यारि स्वर्गनिमें दोय ऐसें । अब इहां उपरि उपरि कह्या, सो कहातें गिनिये सो कहै है । जम्बूद्वीपविर्षे मेरुपर्वत हजार योजन तौ पृथ्वीमें अरु निन्यानवै हजार योजन ऊंचो ताके नीचें तो अधोलोक कहिये । बहुरि मेरुवरावर मोटाई बहुरि तिर्यक् फैलवां तिर्यग्लोक है । बहुरि मेरुकै उपरि ऊर्द्धलोक है । मेरुकी चूलिका चालीस योजनकी ऊंची है । ताके उपरि बालका | अन्तरमात्र तिष्ठया सौधर्मस्वर्गका ऋजु: नामाः इन्द्रकविमान है । अन्य सर्व याका वर्णन लोकनियो । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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