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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ८३ ॥ भाग तीन भाग च्यारि भाग पांच भाग किछू घाटि है । यहू मारणांतिक अपेक्षा है । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है। बहुरि सातमी पृथिवीवाले मिथ्यादृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । अर छह भाग देशोन चोदह भागमैतूं है सो मारणांतिक अपेक्षा है । बहुरि तीन गुणस्थानवालेकै लोकका असंख्यातवा भाग है । बहुरि तिर्यंचगतिविर्षे तिर्यंचमिथ्यादृष्टिनिकै सर्वलोक है । सासादनसम्यग्दृष्टिनिकै लोककै असंख्यातवा भाग है । असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयतनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । अर चोदह भागमैसूं छह भाग कछु घाटि मारणांतिक अपेक्षा है । बहुरि मनुष्यगतिविर्षे मिथ्यादृष्टि मनुष्यलोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर मारणांतिक अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श है । सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । चोदह भागमैतूं मात भाग किछू घाटि मरणांतिक अपेक्षा स्पर्श है । सम्यमिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिकै क्षेत्रवत् स्पर्शन है । देवगतिविर्षे देव मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श हैं । अर चौदह भागमैसूं आठ भाग नव भाग देशोन परस्थानविहार अपेक्षा तीसरी पृथिवीताई गमन मारणातिक अपेक्षा लोकके अग्रभागविर्षे उपजै तब स्पर्श । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । चौदह भागमैसूं आठ भाग For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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