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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ८४ ।। परस्थानविहार अपेक्षा स्पर्श किछू घाटि ।। इंद्रियनिके अनुवादकरि मिथ्यादृष्टि एकेंद्रिय सर्वलोक स्पर्शे । विकलत्रय लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । मारणांतिक अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श । पंचेंद्रियविर्षे मिथ्यादृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । परस्थानविहार अपेक्षा चौदह भागमेंसू आठ भाग देशोन मारणांतिक | अपेक्षा सर्वलोक स्पर्शे । बहुरि सासादन आदि सर्वगुणस्थानवर्तीकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ कायके अनुवादकरि स्थावरकायिक तौ सर्वलोक स्पर्श है त्रसकायिकनिकै पंचेंद्रियवत् स्पर्शन है ।। | योगके अनुवादकरि वचनमनोयोगीनिकै मिथ्यादृष्टिनिकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर चौदह भागमेंसू आठ भाग देशोन है । अर सर्वलोकभी है । अर सामादनसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । सयोगकेवलीनिकै लोकका असंख्यातवा भाग है । काययोगीनिकै मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यंतनिकै अर अयोगकेवलीनिकै गुणस्थानवत् | स्पर्शन है । वेदके अनुवादकरि स्त्रीपुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि लोककै असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर चौदह भागमसूं आठ भाग नव भाग देशोन स्पर्श है । अथवा सर्वलोकभी स्पर्शे है । सासादनसम्यग्दृष्टि For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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