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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ८२ ॥ तीनसे तियालीस भागमें चौदह भाग लिये, तिनिमेंसू आठ भाग तथा द्वादश भाग कहे. तहां तेता राजू जाननां । इहां सासादनमें बारह भागभी कहे हैं, ते मारणांतिक अपेक्षा हैं । सो सासादनवाला सातवी पृथिवीविना छठी पृथिवीतें मारणांतिक करै सो मध्यलोकमें आवै, सो पांच राजू तो ए भये । अरु मध्यलोकतै बादरपृथिवीकायिकादिविर्षे सासादनवाला उपजै तब मारणांतिक समुद्घातकरि लोकका अंतताई स्पर्शे, सो सात राजू ये भये । ऐसें बारह राजू स्पर्श है । सो देशोन कहिये किछू घाटि स्पर्श है । बहुरि सम्यमिथ्यादृष्टिनिकरि अर असंयतसम्यग्दृष्टिनिकरि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शीये है । अथवा चौदह भागमैसू आठ भाग किछू घाटि स्पर्शीये है । सो अच्युतदेवका परस्थानविहार अपेक्षा है । बहुरि संयतासंयतवालेका लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अथवा चौदह भागमैसूं छह भाग किछू घाटि है । इहां अच्युतस्वर्गमें उपजै मो मारणांतिक समुद्घात करे, ताकी अपेक्षा है । बहुरि प्रमत्तसंयत आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिका क्षेत्रवत् स्पर्शन है । विशेषकरि गतिका अनुवादकरि प्रथमपृथिवीवि नारकीनिकै च्यारि गुणस्थानवालेकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । दूसरी लगाय छठी पृथिवीताई के नारकीनिकै मिथ्यादृष्टीनिकै सासादनसम्यग्दृष्टीनिकै लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर चोदह भागमैसू एक भाग दोय For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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