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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केर- पर+केर = परकेरं (दूसरे का) अम्ह+केरं= . अम्हकेरं । (हमारा) . राय । केरं = रायकेरं (राजा का) एच्चय-अम्ह+ एच्चयं = अम्हेच्चयं (हमारा) तुम्ह+ एच्चयं = तुम्हेच्चयं (तुम्हारी) ६. सादृश्यार्थक :- . "यह इसके समान है" यह अर्थ व्यक्त करने के लिए "व" प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे : चंद+व्व = चंदव्व (चन्द्रमा के समान ) महु +व्व =महुव्व (मधु के समान ) ७. भवार्थक : "होने” सम्बन्धी अर्थ बतलाने के लिए अथवा किसी वस्तु में अन्य किसी दूसरी वस्तु के होने की सूचना देने हेतु 'इल्ल' एवं 'उल्ल' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे :प्रत्यय पुल्लिग स्त्रीलिंग . इल्ल- गाम+इल्ल =गामिल्लो गामिल्ली (ग्राम में है) हेट+ इल्ल=हेढिल्लो हेडिल्ली उल्ल- नयर + उल्लं=नयरुल्लं नयरुल्ली तरु+उल्लं तरुल्लं तरुल्ली ८. आवत्वार्थक : "दो बार" "तीन बार" आदि क्रिया की गणना करने के लिए संख्यावाची शब्दों के साथ "हुत्त" एवं 'खुत्त' प्रत्यय लगाए जाते हैं। जैसे : For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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