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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४. www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इल्ल - गुण + इल्ल सोहा + इल्ल उल्ल - वियार + उल्ल इर वंत - मंत ( ३२ ) आल रस + आाल = आलु - दया + प्रोलु = रसालो दयालू लज्जा + आलु = लज्जालु गव्व + इर= गव्विरो धण + वंत: धणवंतो ५. इदमार्थक : + पुण्णमंतो पुण्ण + मंत: सिरि+मंत = सिरिमंतो कव्व + इत्तो = कव्वइत्तो सोहा + मण सोहामणो ( गुणवान् ) गुणिल्लो सोहिल्लो ( शोभावान् ) वियाल्लो ( विचारवान् । = इमा - पुप्फ + इमा: लघु + इमा तण - फल - त्तणं : माणुस + तणं. : = इत्त मण भावार्थक : भाव वाचक संज्ञा बनाने के लिए 'इमा' और 'त्तण' प्रत्यय जोड़े जाते हैं । 'इमा' प्रत्यय स्त्रीलिंग एवं 'तण' प्रत्यय पुल्लिंग एवं नपुंसक लिंग में प्रयुक्त होते हैं । जैसे : ( रसवान् ) ( दयावान् ) (लज्जावान् ) (गर्ववान्, अहंकारी) ( धनवान् ) ( पुण्यवान् ) ( श्रीमान् ) पुप्फिमा लघिमा फलत्तणं माणुसत्तणं ( काव्यवान् ) ( शोभावान् ) For Private and Personal Use Only ( पुष्पत्वम् ) ( लघुत्वम् ( फलत्वम् ) ( मनुष्यत्वम् ) "यह इसका है" इस प्रकार का सम्बन्ध बतलाने के लिए 'केर' एवं 'एच्चय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं । जैसे :
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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