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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . ( ३४ ) हुत्त- एय+हुत्तं = एयत्तं, एयखुतं (एक बार) दु+हुत्तं =दुहुत्तं, दुखुतं (दो बार) सय +हुत्तं = सयहुत्तं, सयखुतं सौ बार) ६. कालार्थक : "जिस समय,". "उस समय" आदि काल-बोध कराने वाले 'एक्क', 'सव्व' आदि शब्दों के साथ "सि" सिग्रं, एवं 'इया' प्रत्यय लगाए जाते हैं। जैसे : एक्क+सि - एक्कसि (एक समय) एक्क -1 सिमं = एक्क सिधे । ) एक्क +इया =एक्कइया = (एक समय) सव्व+सि = सव्वसि = (सभी समय) सव्व-+सिग्रं = सव्वसिअं= ( ) सव्व + इमा=सव्वा = ( , ) १०. परिमाणार्थक : मात्रा अथवा परिमाण व्यक्त करने के लिए इत्तिम, एत्ति, एत्तिल एवं एदह प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। जैसे : ज+इत्तिअं=जित्तिअं (यावत् ) ज+एत्तिअंजेत्तिनं (यावत् ) ज+एत्तिलं =जेत्तिलं (यावत् ) ज=एदह -जेद्दहं (यावत् । ११. विभक्त्यर्थक क्रिया-विशेषण : पंचमी एवं सप्तमी विभक्ति में क्रमश: त्तो, दो (पंचमी) एवं . हि, ह एवं त्थ (सप्तमी) प्रत्यय जड़ते हैं। जैसे : त्तो-सव्व+त्तो=सव्वत्तो = (पंचमी) दादा For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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