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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरलीकरण की प्रवृति के कारण नपुंसक-लिंग की संज्ञाएं प्रायः पुल्लिग अथवा स्त्रीलिंग में मिश्रित मिलती हैं। पुल्लिंग-संज्ञाए अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त मिलती हैं तथा स्त्रीलिंग की संज्ञाएं अकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त एवं । ऊकारान्त मिलती हैं। तीसरा पाठ सन्धियाँ सन्धि एवं संयोग की परिभाषा:दो वर्णों के मेल से उत्पन्न होने वाले वर्ण-विकार को सन्धि कहते हैं तथा दो वर्गों के बिना विकृति के ही मिल जाने को संयोग कहते हैं। प्राकृत में सन्धि की व्यवस्था वैकल्पिक मिलती है, ' नित्य नहीं। जैसे-दधीश्वरः शब्द को सन्धि होकर दहीसरो रूप भी मिलता है तथा दहि-ईसरो भी। सन्धि-भेद :-प्राकृत-व्याकरण के अनुसार सन्धियाँ तीन प्रकार की हैं :-१. स्वर-सन्धि २. व्यंजन सन्धि, एवं ३. अव्यय-सन्धि विशेष :-प्राकृत में विसर्ग का प्रयोग नहीं होता। अतः उसमें विसर्ग सन्धि नहीं होती। (१) स्वर-सन्धि :--दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो वर्ण-विकार उत्पन्न होता है, उसे For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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