________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२२
श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद.
१६६. क्षेत्रना अवग्रह कार्यमां क्षेत्रदेवीनुं संस्तव-स्तुति करता माधुओने वसति दोष छे, ते उत्पादनना शोलदोष मांहेलो अग्यारको 'पुव्वापच्छच संथव' नामनो जाणवो. १६७. आ आचरण जे सूत्र विरुद्ध अने जे स्वच्छंदमतिए कल्पाएली गोलाए कहेवाती, ते आचरणा निश्चेथी माराक्डे नही थाय. २६८. हने पख्खी संबंधी, चोमासी तथा संवच्छरी संबंधी प्रतिक्रमणनो विधि कहे छ:-श्रीआवश्यक नियुक्तिना पांचमा अध्ययनमा जणाये के के:-" देवसिय, राइय, परिखय, चौमासिय अने संवच्छरीय ए पांचे प्रतिक्रमणमां, एक एक प्रतिक्रमणमा त्रण त्रण गमा जाणवा. १. प्रथम सामायिक उच्चार करी काउस्सग्गनी पहेला, फरी बीजीवार पडिकमतां अने त्रिजीवार काउस्सग करतां पहेला सामायिकनो उच्चार शा माटे कराय छे ? गुरु उत्तर आपे छ के-समभावमा रही काउस्सग्ग करे, एवीज रीते समभावमा रही प्रतिक्रमण करे अने समभावमां स्थितात्मा काउस्सग करे, ए माटे त्रण वखत सामायिकनो उच्चार बतावेल छे. २-३. आ पांचे देवसिय विगेरे प्रतिक्रमणोमां एक एक प्रतिक्रमणनी अंदर त्रण त्रण गमा जाणवा. सामायिकलो उच्चार करी पडिकमणने माटे अतिचार चिन्तवनरूप काउस्सग करवू ते प्रथमगमो, फेर सामायिकनो उच्चार करी प्रतिक्रमणसूत्रनु कहेवं, ते बीजो गमो अने सामायिक अध्ययन उच्चारण करीने चारित्र शुद्धि करवा काउस्सग्गनुं करवु ए त्रिजो गमो, एम त्रण गमा ना
For Private And Personal Use Only