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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५३ मुं २२३ णवा. अहिं बीजो कोइ प्रश्न करे छ। प्रतिक्रमणना माटे प्रथम काउस्सग्गना आदिमां सामायिकनो उच्चार करीने फेर केम बीजी वार प्रतिक्रमणसूत्रनी आदिमां तेनो उच्चार करवामां आवे छे ? अने बळी त्रिजी वार चारित्र शुद्धिनी आदिमां ते सामायिक सूत्रनो उच्चार करवामां आवे छे ? एम को छते गुरु कहे छे:-समभावमा रहेल आत्मा प्रथम उच्चारण करेल छ सामायिक जेणे एवो ते काउस्सग्ग करीने अने एवीज रीते बीजी वखत उच्चारण करेल छे सामायिक जेणे, ते पतिकमणसूत्र भणे अने त्रिजी वार पण समभावमां रहेल, उच्चरित सामायिकवाळो चारित्रनी शुद्धि माटे काउस्सग्ग करे. प्रथम समभावमा रहेलनेज प्रतिक्रमण कयु गणाय, ते शिवाय न गणाय. एटला माटे त्रणवार करेमिभंते कहेवाय छे. अथवा "सज्झाय, ध्यान, तप, काउस्सग्ग, उपदेश, स्तुति, प्रदान अने संतगुण कीर्तन एटलामां पुनरुक्तदोष नथी गणतां. १" आq वचन होवाथी. पांचे प्रतिक्रमणमां अतिचार चिन्तवन रहेलज छे. उपर बतावेल नियुक्तिना बले पख्खी, चोमासी अने संवच्छरीपतिक्रमण देवसी प्रतिक्रमणनी साथे कराय छे, अने तेमां काउस्सग जे जे आवे छे ते ते जोतकल्पथी छे. १६९. देवसियप्रतिक्रमणमां शो शासोश्वास, अने राइप्रतिक्रमणमां ते पचास होय छे, परिखमां त्रणशो, चोमासीमां पांचशो. १७०. तेमज एक हजारने आठ शासोश्वास संवच्छरी प्रतिक्रमणमां जाणवा. एम श्रीआवश्यकनियुक्तिमां For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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