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उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपटः
नाम छइ । हिवं ते सूत्रसाधु वांचतउ उपदेशदाता बोलाइ। परं ते उपदेशना भाव भेद परीछया जोइयइ । विधिवाद १, चरितानुवाद २, यथास्थितवाद ३, ए उपदेश ते हेय १ ज्ञेय २ उपादेय ३ छइ, एतलामाहि सर्व शास्त्रनउ रहस्य गुरुप्रसादि जाणियइ ॥ श्रीआगममाहि ठामि ठामि साखि छइ, परं विशेषिई श्रीरायपसेणी तथा श्रीजीवाभिगममाहि श्रीजिनपतिमाधिकारि-" हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति । " जिननी दाढ अनइ श्रीजिनप्रतिमावंदन पूजनना एहवा फल बोल्या। तथा श्रीभगवतीमाहि खंधक परिव्राजकनई पत्रज्याधिकारि धनकाढिवानउ फल, " हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति" एहवउ बोल्यउ छइ ॥ तथा श्रीरायप्पसेणीमाहि, श्रीभगवतीमाहि, श्रीतीर्थकर वांदिवानउ फल-" हियाए सुहाए" इत्यादि बोल्यउं छइ ॥ तथा श्री आचारांगादि सूत्रमाहि ठामि २ पंचमहाव्रतपालिवानां फल “हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्तार" अथवा । "एस खलु पाणाइवायवेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेयसिए आणुगामिए " इत्यादि छहइ व्रतनयं फल बोल्यउं । हिव ए सत्र वचन सूत्रमाहि बोल्या भणी साधुनउ उपदेश कहवाइ, परं जे डाहर हुसिइ ते एहमाहि हेय उपादेय जाणिस्यइ । एतलामाहि जिनप्रतिमानउ जे उपदेश फल ते सामानिकदेवतानउ भाष्य जाणियइ छइ । साधुनइ ए यथास्थितोपदेश; परं सम्यगृदृष्टीना
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