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पुरश्चरण की विधि, कुमारीपूजा में स्थान, क्रम, उपचार, दान, आदि का निरूपण विविध पुरश्चरण, मन्त्र का अमृतीकरण, मन्त्रसिद्धि के उपाय, योनिमण्डल-ध्यान, प्रफुल्लबीज-ध्यान, कालीबीजध्यान, श्यामा के 32 अक्षरों के मन्त्र का ध्यान, कुल-वृक्ष, कामकला, लेलिहान मुद्रादि कथन, अठारह उपचार
और उनके मन्त्र । नवदीपविधि। प्रणामविधि। संहार-मुद्रा। प्रार्थना-मुद्रा। शिर का प्रदान, रुधिर का दान, वर्जनीय शक्तियां, विजयापन में कालनियम, वीरों के स्नान, सन्ध्योपासना, तर्पण आदि। द्रव्य-शोधन, शाप-विमोचन हंस-मन्त्र, पानपात्र का परिमाण, लतासाधन, शक्ति शुद्धि, पंचतत्त्व, कुण्डगोल-ग्रहण आदि की विधि। दूतीयजन। कुलनायिकाएं। चितासाधन एवं शवसाधन में स्थान, आसन आदि के नियम इत्यादि तांत्रिक विधि।। कालीतत्त्वामृतम् - ले. बलभद्र पण्डित । श्लोकसंख्या- 1680 । विषय- "पशु" के सम्मुख इस तन्त्रशास्त्र की चर्चा की निषेध, प्रतिमा आदि में शिलाबुद्धि करने में दोष, अदीक्षित का तन्त्रशास्त्र में अनधिकार, विवाहित और अविवाहित गुरु। दिव्य, वीर, पशु आदि का भेद, कौलिकों का पशु के मन्त्र ग्रहण में प्रायश्चित्त । कलि में काली-उपासना की कर्तव्यता, आगमोक्तदीक्षा ग्रहण करने के बाद पुराणविधि से कर्मानुष्ठान करने में कलाभाव, गुरु और शिष्य के लक्षण, मन्त्र के दस संस्कार । यन्त्रसंस्कार, मालासंस्कार । पुरश्चरण की आवश्यकता, पुरश्चरणक्रम, मन्त्र के सूतकादि दोषों का निरूपण, स्वतन्त्र तन्त्रादि मतसाधन। वास्तुयाग-विचार सिद्धिप्रकार आदि। कालीतन्त्रम् - 1) श्लोक 600। 11 पटल। उमा-महेश्वर संवाद रूप। 2) श्लोक 415 | विषय- शिवात्मिका मूल शक्ति काली की समन्त्र पूजा, प्रतिष्ठा, निष्क्रमण, अभिषेक, स्नान आदि। संभवतः यह उमामहेश्वर- संवादरूप कालीतन्त्र से भिन्न है। इसमें केवल 4 पटल हैं। कालीपुराणम् - अध्याय- 60। श्लोक- 5400। यह रुद्रयामलान्तर्गत महाकालसंहिता से गृहीत उमामहेश्वर-संवाद रूप है। पुष्पिका में यह ग्रंथ रुद्रयामलान्तर्गत कहा गया किन्तु यह कालिकापुराण के संस्कारण से हूबहू मिलता है, जो वंगवासी इलेक्ट्रिक मशीन प्रेस कलकत्ता से, सन 1909 में प्रकाशित हुआ था। कालीपूजा - 1) श्लोक- 220। राघवानन्दनाथकृत ।
2) श्लोक 300। स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वतीकृत । कालीपूजापद्धति- रुद्रमलान्तर्गत। श्लोक - 798। कालीपूजाविधि - इसमें काली के ध्यान, मन्त्र आदि के साथ पूजाविधि प्रतिपादित है। कालीभक्तिरसायनम् - ले. दक्षिणाचारप्रवर्तक काशीनाथ भट्ट । श्लोक - 5501 पिता- भडोपनामक जयराम भट्ट। मातावाराणसी। वाराणसी के निवासी। ग्रंथ 8 प्रकाशों में पूर्ण है।
विषय- आचारनिर्णय। 22 अक्षरों के मन्त्र का उद्धार । प्रातःकृत्य । तान्त्रिक सन्ध्याविधि । द्वारपूजा से न्यासविधान तक यन्त्रोद्धारविधि । देवता-पूजाविधि। आवरणपूजाविधि। विद्यामाहात्म्य तथा उपासकधर्म विधि और पुरश्चरण विधि। इसमें प्रमाण रूप से अनेक तन्त्रग्रन्थों का उल्लेख है। कालीमेधादीक्षितोपनिषद् - आर्थवण के सौभाग्य - कांडातर्गत उपनिषद् । इसमें मेधादीक्षिता के स्वरूप में काली की उपासनाविधि को सर्वश्रेष्ठ दीक्षा माना गया है। इसमें षट्चक्रभेदन शक्ति और अनेक सिद्धियां प्राप्त होने की बात कही गयी है। कालीविलास-तन्त्रम्- 1) श्लोक 11001 35 पटलों में पूर्ण। 2) श्लोकसंख्या 925। देवी-सद्योजात (शिव) संवादरूप यह तन्त्र शिवप्रोक्त है। इसमें 30 पटल हैं। विषय- प्रस्तावना, तन्त्रनाम का निर्वचन, शूद्र के लिए प्रणव, स्वाहा आदि के उच्चारण का निषेध। शूद्र जाति के लिए प्रशस्त मन्त्र । स्वाहा तथा प्रणव युक्त स्तोत्रपाठ आदि में शूद्र का भी अधिकार। कलियुग में पशुभाव की कर्तव्यता और दिव्य वीर भाव आदि का निषेध। दीक्षाकाल, दिव्यादि भावों के लक्षण। कलियुग में संविदापान का नियम, शिव और विष्णु में अभेद । कलियुग के योग्य वशीकरण, मोहन। विविध देवता के स्तोत्र, पूजा, मन्त्र, ध्यान आदि । महिषमर्दिनी के गुणों का निरूपण। कृष्णजी की माता कालिका के कामबीज तथा ध्यान। पंचबीजों का निणय। मात्राबाज का साधन। रमा-बीज आदि का निरूपण, कामबीज के और स्त्री-बीज के लिखने का क्रम। अनुलोभ -विलोम से आकारादि से लेकर क्षकार तक जप-प्रकार। कृष्ण के मुरलीधारण का विवरण। कलियुग में पुरश्चरण, होम आदि करने का निषेध । गुरुपूजा से ही सब सिद्धि होती है यह प्रतिपादन। कालशाबरम् - श्लोक 931 तीन पटलों में पूर्ण । शिवपार्वती-संवादरूप इस ग्रंथ में शाबरों के सिद्ध, कुमारी, विजया, कालिका, काल, दिव्य, श्रीनाथ, योगिनी, तारिणी तथा शंभू नामक 12 प्रकार बताये गये हैं। इसी प्रकार 12 अघोर
और 10 गारुड भी हैं। इसके परिभाषा, कालीसंक्षेप और कालीशाबर नामक 3 पटलों के बाद हिन्दी में एक विभाग
और है जो “शाबर सकल साधन" के नाम से अभिहित है। कालीसर्वस्वसंपुटम् - श्लोक 4256। लेखक न्यायवागीश भट्टाचार्य के पुत्र श्रीकृष्ण विद्यालंकार। जिन महातन्त्र ग्रंथों के आधार पर इसकी रचना की गयी है उनकी सूची ग्रंथारम्भ में दी गयी है। दीक्षाप्रसंग, काली के आठ भेद, काली शब्द की व्युत्पत्ति, साधकों के प्रातःकृत्य, विविध न्यास, महाकालपूजा, आवरणपूजा, काली के विविध स्तोत्र, मालाभेद, मालाशोधन
और मालासंस्कारविधि, शरत्कालीन विविध पुरश्चरण, कुमारीपूजा, दूतीयाग, योनिपूजा, पंच मकार विधि,विजयाकल्प, मांस, मत्स्य, मुद्रा आदि की शोधन-विधि, वीरसाधन विधि, शवलक्षण आदि कथन, तीन प्रकारों के शवधानविधि, योगियों के नित्य कृत्य,
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 63
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