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कालिदासरहस्यम्- ले. डॉ. श्रीधर भास्कर वर्गीकर नागपुरनिवासी हिन्दी अनुवाद सहित राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद की अध्यक्षता में राजधानी में उज्जयिनी में विमोचन संपन्न । प्रथम कालिदास महोत्सव के प्रसंग पर केवल 5 दिन में रचित। इस खण्ड काव्य में प्रायः प्रत्येक श्लोक के अंत में कालिदास के काव्यों के उपमानों का प्रयोग करते हुए कवि ने कालिदास का माहात्म्य वर्णन किया है। टिपण्णी में उपमानों के संदर्भ दिए हैं।
कालिदास विश्वमहाकविले. व.सं. पै. गुरुस्वामी शास्त्री, जो आत्मविद्याविभूषणम् तथा साहित्य वेदान्त शिरोमणि उपाधियों से विभूषित हैं। निवासस्थान मद्रास । प्रस्तुत ग्रंथ 8 भागों में विभाजित है । कालिदास के विषय में अन्यान्य विद्वानों ने जो कुछ आक्षेप उठाए हैं उनका सप्रमाण निराकरण, पद्यात्मक निबंधों में प्रस्तुत ग्रंथ में किया है। कालिदास विश्व के एक श्रेष्ठ महाकवि थे यह सिद्ध करने का लेखक का प्रयास सराहनीय है। प्रस्तुत ग्रंथ अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामिगल एज्युकेशन ट्रस्ट द्वारा 1981 में मद्रास में प्रकाशित हुआ । कालिदासीयम् से. डॉ. कैलाशनाथ द्विवेदी विषयकालिदासविषयक विविध निबंधों का संग्रह । कालिन्दी सन 1036 में आगरा से हरिदत्त शास्त्री के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ, किन्तु अर्थाभाव के कारण केवल एक वर्ष तक ही प्रकाशन हो सका। यह आर्य-समाज संस्कृत विद्यालय आगरा की पत्रिका थी। इसमें धर्म, दर्शन, विज्ञान तथा आर्यसमाजसंबंधी निबन्धों का प्रकाशन होता था ।
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कालिन्दी (नाटक) - ले. श्रीराम भिकाजी वेलणकर । अंकसंख्या तीन । अनेक छन्दों का प्रयोग प्राकृत भाषा नहीं । कथावस्तु उत्पाद्य और सोद्देश्य । हिंसा-अहिंसा का विवेक जगाने हेतु लिखित । कथासार- अयोध्या नरेश चण्डप्रताप के बड़े दामाद मगधराज सुधांशु अहिंसावादी हैं। छोटी कन्या कालिन्दी का विवाह दुर्गेश्वर के साथ निश्चित हुआ है, परंतु उसके युद्धप्रिय होने से सुधांशु विवाह के विरोध में है। दुर्गेश्वर सुधांशु पर आक्रमण करता है । सुधांशु के युद्धविरत होने के कारण उसकी पत्नी मंदाकिनी युद्धभूमि पर उतरती है। वह बंदिनी बनती है यह देख सुधांशु अहिंसावत छोड़ कर पत्नी की रक्षा हेतु उद्यत होता है, तो दुर्गेश्वर कहता है। अब मेरा मन्तव्य पूरा हो चुका" और युद्ध समाप्त होता है। हिंसा-अहिंसा में विवेक करने के बाद दुर्गेश्वर और कालिन्दी का विवाह होता है। कालीकल्पलता ले. विमर्शानन्दनाथ । श्लोकसंख्या 1062 कालीकुलक्रमार्चनम् ले. परमहंस विमलबोधपाद लेखनकाल सन 1710 | श्लोकसंख्या - 700 ग्रन्थारम्भ में ग्रन्थकार ने अपने गुरुजी को नाम निर्देशपूर्वक नमस्कार किया है। वे हैंविश्वामित्र, वशिष्ठ, श्रीकण्ठ, कुण्डलीश्वर, मीनांक और तालांक।
62 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
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विषय- कुलक्रमानुसार कालीपूजा तथा अन्तर्यागविधि, आसनविधि, न्याससहित ध्यानविधि, नित्यार्धनविधि आदि । कालीकुलामृततन्त्रम् - श्लोक 1150 15 पटल । ग्रन्थ में मुख्यतया कालीपूजा और तारापूजा का प्रतिपादन है। अनेक मन्त्रों के उद्धार, ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति कीलक, विनियोग, ध्यान, पूजा स्तोत्र और कवच का वर्णन है। इसका साधनक्रम भी वर्णित है। लेखनकाल 18 वीं शताब्दी । कालीकुलार्णवतन्त्रम् देवी भैरव संवाद रूप। श्लोक 1176 इसमें भैरव को वीरनाथ कहा है। वीर का अर्थ है जो वामाचारीपूजा से सिद्धि प्राप्त कर चुका है। वीरनाथ उन वीरों के सर्वोच्च अधिपति है।
कालितत्त्व ( नामान्तर- आचारप्रतिपादन-तत्त्वम्) ले. राघवभट्ट | विषय - साधकों के प्रातः कृत्य, स्नान, सन्ध्या, तर्पण, पूजा, द्रव्यशुद्धि, कुलसम्पत्ति, पुरश्चरण, नैमित्तिक कर्म, काम्य कर्म, कौलाचार, स्थानपुष्प प्रायश्चित, कुमारीपूजा विधि, मालास्तुति, शान्तिमन्त्र तथा रहस्य आदि । इस ग्रंथ में सप्रमाण रूप से अनेक तन्त्र उद्धृत हैं। राघवभट्ट बहुत बडे तान्त्रिक ग्रन्थ लेखक और टीकाकार थे। शारदातिलक पर लिखी गयी पदार्थादर्श नाम की उनकी टीका तन्त्रनिबन्धों में प्रायः उध्दृत है। ग्रंथकार ने अपनी टीका शारदातिलक का सत्सम्प्रदायकृत व्याख्या के नाम से उल्लेख किया है। 1
कालीतत्त्वसुधा सिन्धु (नामान्तर कालीतत्त्वसुथार्णव ले. कालीप्रसाद काव्यचुंचु । श्लोक 13972। 32 तरंगों में पूर्ण । यह विशाल ग्रंथ काली की पूजा पर विभिन्न तन्त्रों से संगृहीत है। इसकी समाप्ति 1774 संवत् में हुई । विषय दीक्षा
शब्द की व्युत्पति । गुरु के बिना पुस्तक से मन्त्र ग्रहण में दोष, दीक्षा न लेने में दोष, श्वशुर आदि से मन्त्र - ग्रहण करने पर मंत्रत्याग और प्रायश्चित्त करने का विधान । स्वप्न में पाये मन्त्र के संस्कार । निषिद्ध और सिद्ध लक्षणों से युक्त गुरु का निरूपण, स्त्री और शूद्रों को प्रणव, स्वाहा आदि से युक्त दीक्षा की आवश्यकता । तन्त्रादि शास्त्रों में संदेह, निंदा आदि करने में दोष, मन्त्र और मन्त्रवक्ता की प्रशंसा । तन्त्र और आगम पदों की व्युत्पत्ति 32 अक्षरों के नाम और अर्थकथन, दक्षिणापद की व्युत्पति । काली के तन्त्र की प्रशंसा, दक्षिणकाली, सिद्धकाली आदि के मन्त्र । वीरभाव, दिव्यभाव का निरूपण । सात प्रकार के आचारों का निरूपण । कलियुग में पशुभाव की प्रशस्तता । प्रतिनिधि द्रव्यों का निरूपण । पशुभाव आदि में पूजाकाल की व्यवस्था । पूजा के अधिकारी का निरूपण । पुरोहित के प्रतिनिधि होने का निषेध बलिदान की प्रशंसा, अवैध हिंसा में दोष । पूजा की आधारभूत प्रतिमा । विशेष कुलदीक्षा, स्वकुल- दीक्षा, मन्त्र के छह साधन प्रकार और दस संस्कार, मातृका - मन्त्र, वर्णमाला की उत्पत्ति, वैदिक के जप में माला का विधान, वीरों के पुरश्चरण की विधि, ग्रहण में
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