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करना चाहिये। प्रिय व सत्यवाणी, दया, दान, दीन दुर्बलों की सुरक्षा व सज्जनों की संग्रह यही सत्पुरुष व्रत है। प्रजा के कष्ट, क्षुधा, दुःख आदि अपने ही दुःख मानकर करुणा से युक्त होकर दीनों का उद्धार करना चाहिये। __केवल भारत ही नहीं तो बालिद्वप में रहने वाले भी हिन्दू इसे अपना प्रमुख राजनीतिक ग्रंथ मानते हैं। कामधेनु - ले. सुमतिचन्द्र । ई. 11-12 वीं शती। अमरकोश की टीका। तिब्बती भाषा में अनूदित ।। कामधेनुतंत्रम् - शिव-पार्वती संवाद रूप यह तन्त्रग्रंथ 24 पटलों में पूर्ण है। श्लोकसंख्या 9801 22-23 और 24 वें पटल के विषय क्रम से ये दिये गये हैं। चन्द्र या सूर्य पर्व में यदि पूर्ण आकाश मेघाच्छन्न रहे तो जप, होम आदि करने की विधि, पार्थिव शिवलिंग की पूजा और उसका फल तथा मालारहस्य इत्यादि। कामप्रबोध - ले. अनूपसिंह । कामप्राभृतकम् - ले.केशव। काममीमांसा - ले. बेल्लमकोण्ड रामराय। ई. 19 वीं शती। आन्ध्रप्रदेश के निवासी। कामलिन (या कामलायिन) - (कृष्ण यजुर्वेद की शाखा) कामलिन और कामलायिन एक थे या दो, यह निश्चित रूप से नही बताया जा सकता। तीसरा और भी एक नाम कामलायन मिलता है। इस संहिता या ब्राह्मण ग्रंथ के संबंध में नाम मात्र के अतिरिक्त कुछ भी ज्ञात नहीं। कामतन्त्रम् - ले.-श्रीनाथ। इसके 16 उपदेश नामक अध्यायों में वर्णित विषय हैं :- वशीकरण, आकर्षण, युद्धजय, व्याघ्र निवारण, स्तंभन, मोहन, केशादिरंजन, बीजवर्धन, गाढीकरण, कलहादिकरण, अरिष्टनाशन, गो-महिषी आदि का दुग्धवर्धन, नाना कौतक कामसिद्धि, अनावष्टिकरण, गप्तधन कोश. अंजनादि. मृतसंजीवन, विषनिवारण, यक्षिणीसाधन, तथा रसादियोधन आदि । प्रयोग कर्म कब करने चाहिए इस विषय पर भी इसमें प्रकाश डाला गया है। जैसे आकर्षण आदि बसन्त में, विद्वेषण ग्रीष्म में, स्तंभन वर्षा में, मारण शिशिर में. शान्तिक शरद में और पौष्टिक कर्म हेमन्त में करने चाहिये। जडी-बूटी, उखाडने के मन्त्र वार, तिथि नक्षत्र आदि भी बतलाये गये हैं। कामरुतन्त्रम् - शिव-काली संवादरूप। श्लोकसंख्या 442 | इसमें तान्त्रिक औषधियों के निर्माणार्थ विधियाँ और मन्त्रोच्चारण बतलाये गये है। इसमें मन्त्रावली, कामरत्नावली, विषसाधन आदि चार अध्याय हैं। कामरूपयात्रापद्धति - ले. हलिराम शर्मा । श्लोकसंख्या 1780 । 10 पटल। कामरूप (कामाख्या) के यात्रियों की सुविधा के लिये यह ग्रंथ लिखा है। विषय - कामरूप शब्द की व्युत्पत्ति, कामाख्या की पांच देवी मूर्तियों की पूजा का माहात्म्य, यात्रियों के कर्तव्य, कामाख्या पूजा का समय, मणिकूट तीर्थयात्रा का
माहात्य, कामरूपक्षेत्र का माहात्म्य, अश्वक्रान्ततीर्थ, कामाख्या यात्रा, पूजन, हयग्रीव विष्णुयात्रा, दिक्पालादि यात्रा, संक्षेपतः यात्रा वर्णन तथा कामाख्या आदि पंच देवी मूर्तियों की पूजा का वर्णन है। कामविलास (भाण) - ले. प्रधान वेङ्कप्प। ई. 18 वीं शती। स्त्रियों के चरित्रविनाश की गाथा। नायक पल्लवशेखर की अनेकों प्रेमिकाओं के साथ मिलने की कथा। कामवैभवम् - ले.अक्षयकुमार शास्त्री। कामशुद्धि (एकांकिका) - ले. डॉ. वेंकटराम राघवन् । प्रथम अभिनय कालिदास समारोह में। आकाशवाणी पर प्रसारित। नाट्योचित लघुमात्रिक संवाद। भारतीय परंपरा का योरपीय नाट्य पद्धति से मिश्रण इसमें है। कथावस्तु उत्पाद्य । कथासार - काम तथा मधु (वसंत) से रति कहती हैं कि उन दोनों के क्रियाकलाप दोषपूर्ण है। उन्हें सत्पथ पर लाने हेतु वह तपस्या करती है। शिव उसे दर्शन देकर आश्वस्त करते हैं कि मैं मदन को भस्म करके तुम्हारे अनुकूल अनंग बनाऊंगा। तब वह पुरुषार्थों में से एक महत्त्वपूर्ण स्थान पाएगा। रति प्रसन्न होती है और शिव अन्तर्धान होते हैं। कामसमूह - ले.अनन्त। ऋतुवर्णन से प्रारम्भ कर नायिका भेद, शंगार की प्रत्येक सीढी में प्रगति आदि विषयों का विवरण है। समय ई.स. 1457 | इसके कुछ श्लोक सुभाषितावली में दूसरे कवियों के नाम पर उद्धृत होने से यह रचना संग्रहरूप मानी जाती है। कामसार - ले.कर्णदेव। कामसूत्रम् - ले.वात्स्यायन। यह कामशास्त्रीय सूत्र तथा वृत्तिरूप, रचना समाजशास्त्र तथा सुप्रजनन शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें तत्कालीन भारतीय घर का अन्तर्भाग तथा परिवेष का पूर्ण ज्ञान होता है। इस में भारतीय नारी पतिपरायण, गृहस्वामिनी तथा पति के खर्च पर बन्धन रखने वाली स्त्री के रूप दृष्टिगोचर होती है। सर्व साधारण नागर तरुणों की दिनचर्या, उनका विलासी जीवन आदि तत्कालीन सामाजिक विभिन्न अंगों पर इससे प्रकाश पडता है। इसमें स्त्री-पुरुष यौवन संबंध का सब दृष्टि से गहन विवेचन है। कामसूत्र के प्रमुख टीकाकार हैं - 1) यशोधर (जयमंगला टीका) कई विद्वानों का मत है कि यह टीका शंकरार्य या शंकराचार्य की रचना है और यशोधर केवल लेखनिक हैं। 2) भास्कर नृसिंह 3) वीरभद्रदेव (बघेलवंशीय नृपति) रामचन्द्र-पुत्र-टीका-कन्दर्पचूडामणि, काव्यमय रचनाकाल- ई. सन 1577 4) मल्लदेव। कुछ अज्ञात लेखकों की टीकाएं भी उपलब्ध हैं। कामाक्षीविलास - ले. मलय कवि। पिता- रामनाथ । कामाख्यागुह्यसिद्धि - ले. मत्स्येन्द्रनाथ ।
58 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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