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कामाख्यातन्त्रम् - 1) पार्वती -ईश्वर संवादरूप। 7 पटल। भगवान् शिव कहते हैं कि यह तन्त्र सर्वथा गोपनीय है। शान्त शुद्ध कौलिक तथा काली-भक्त शैव को ही इसका उपदेश देना चाहिये।
2) श्लोकसंख्या 450। 9 पटल ।
3) श्लोकसंख्या 401 । पटल 8। पार्वती-ईश्वर संवादरूप। इसमें योनिरूपा वरदायिनी कामाख्या महाविद्या की कौलाचार के अनुरूप पूजा वर्णित है। विषय - कामाख्या महादेवी तथा उनके इस तन्त्र की उत्कृष्टता। कामाख्या मन्त्रोद्धार, कामाख्या पूजा प्रकार, योनिपूजा। अन्त में रहस्य तन्त्र के गोपन की विधि तथा अधिकारी के निरूपण के बहाने उपदेश्य और अनुपदेश्यों का कथन। कामानन्दम् - ले. वरदराज। पिता - ईश्वराध्वरी। कामायनी - मूल हिन्दी लेखक जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य का अनुवाद। अनुवादक - भगवद्दत्त (राकेश)। सन 1960 में प्रकाशित। कामिकागम - 1) इस आगम ग्रंथ में कुल 60 पटलों में
भूपरीक्षा, भू-परिग्रह, पाद-विन्यास, वास्तुदेव काल, ग्रामदिलक्षण, ग्रामग्रहविन्यास, वास्तुशास्त्रविधि, पादमानविाधि, प्रासादभूषण विधि, देवतास्थापनाविधि, मंडपस्थापन आदि विषयों का विवेचन
(कर्णागम, रूपभेदागम, वैखानसागम, वास्तुरत्नावली, वास्तुप्रदीप आदि ग्रंथों में भी वास्तुविद्या का व्यापक विवेचन है।)
2) श्लोक संख्या 6000 । विषय - पूजा, महोत्सव आदि । कामिनी-काम-कौतुकम् - ले.म.म. कृष्णकान्त विद्यावागीश (सन 1810) में रचित काव्य। कामेशार्चन-चन्द्रिका - 1) श्लोक 600। भडोपनामक जयरामभट्ट के पुत्र काशीनाथ द्वारा रचित। तीन प्रकारों में विभक्त । इसमें कामेश्वर शिवजी की पूजापद्धति वर्णित है। इस पद्धति के समर्थन में बहुत से आकर ग्रन्थों के वचन प्रमाण रूप से इसमें उद्धृत किये गये हैं। काम्यदीपदानपद्धति - ले.प्रेमनिधि पन्त। पिता- उमापति । कार्तवीर्यार्जुन का साक्षात् या परम्परा द्वारा अनुष्ठेय काम्य दीपदान कर्म इसमें प्रतिपादित है। काम्ययन्त्रोद्धार - श्लोकसंख्या 500। ले. महामहोपाध्याय सत्पण्डित परिव्राजकाचार्य। मातृकायन्त्र आदि सब यंत्रों को लिखने की विधि इसमें वर्णित है। आचार्य ने कहा है कि इन यन्त्रों को केशर, गोरोचन, कस्तूरी गजमद और चन्दन से सुवर्ण की लेखनी द्वारा लिखें। मन्त्रसाधक को सूचना है कि वह मन्त्र को भूमिष्ठ, विवरस्थ, दग्ध, निर्माल्यमिश्रित, लंधित और खण्डित कभी न करे। कारककारिका - ले. पुरुषोत्तम देव । ई. 12-13 वीं शती।
कारक-कौमुदी - ले.पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर । ई. 15 वीं शती । कारकचक्रम् - ले.- पुरुषोत्तम। कारकनिर्णयटीका - ले.- रामचन्द्र तर्कवागीश । कारक-रहस्यम् - ले.-रामनाथ विद्यावाचस्पति । ई. 17 वीं शती । कारकवाद - ले.-गदाधर भट्टाचार्य । कारकविवेचनम् - ले.-भवानन्द सिद्धान्तवागीश। ई. 17 वीं शती। कारकाद्यर्थनिर्णय - ले.भवानन्द सिद्धान्तवागीश। ई. 16-17 वीं शती। कारकोल्लास - ले. भरत मल्लिक। ई. 17 वीं शती। कायस्थधर्मप्रदीप - ले. गागाभट्ट काशीकर। ई. 17 वीं शती। पिता- दिनकरभट्ट। छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणा से यह ग्रंथ लिखा गया। कारणागम - श्लोक - 6000। पटल 84। यह प्रतिष्ठातन्त्र का क्रियापाद है और किरणागम के मतानुसार दश शिवागमों मे अन्यतम है। मतान्तर में इसके स्थान पर 10 शिवागमों में कुक्कुटागम माना जाता है। विषय - रामेश्वरपूजा, शिवविवाह प्रयोग, रत्नलिंग-स्थापनाविधि और उत्सव इत्यादि। कारिकावली - ले.नारायण भट्टाचार्य। व्याकरण विषयक प्राथमिक ग्रंथ। कार्तवीर्यकल्प - (सहस्रार्जुनकल्प, अथवा कार्तवीर्यार्जुनकल्प) इसी नाम के 300 से 25 हजार श्लोक वाले दस से अधिक ग्रन्थ हैं। कार्तवीर्यदीपदानपद्धति - ले. कमलाकरभट्ट। श्लोकसंख्या 250। इसमें कार्तवीर्य भगवान् की प्रकाशता के लिये किये जाने वाले दीपदान का विवरण दिया गया है। वसन्त, शिशिर, हेमन्त, वर्षा, और शरद् में वैशाख श्रावण, आश्विन कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन मासों में दीपदान श्रेयस्कर माना है। कार्तवीर्यदीपदानविधि - उमा-महेश्वर संवादरूप कार्तवीर्य भगवान् को प्रज्वलित दीप-प्रदान करने की विधि इसमें वर्णत है। यह दीपदान वैशाख, श्रावण, आश्विन कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माध और फाल्गुन इन आठ मासों में माना गया है। कार्तवीर्यपूजापद्धति - ले.पुरुषोत्तम। श्लोकसंख्या- 9501 इसमें कार्तवीर्य के मालामन्त्र, अस्त्रोपसंहरण मंत्र तथा महामन्त्र से पूजाविधि निर्दिष्ट है। कार्तवीर्यप्रबंध (चम्पू) - ले. त्रावणकोर के युवराज अश्विन श्रीराम वर्मा। रचना काल ई. 18 वीं शती। इस काव्य ने रावण व कार्तवीर्य के युद्ध एवं कार्तवीर्य की विजय का वर्णन किया है। प्रकाशन वर्ष - 19471 कार्तवीर्यप्रयोग - ले.चन्द्रचूड। श्लोकसंख्या 1745 ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /59
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