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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकृष्ण के मुख से भी प्राकृत गान। अन्यत्र कही अधम त्रुटित रूप में उपलब्ध है। कठोपनिषद् तो प्रसिद्ध ही है। पात्रों द्वारा भी संस्कृत संवाद। संगीतमयी शैली। अनुप्रास कठश्रुत्युपनिषद् नाम का ग्रंथ भी उपलब्ध है। काठक गृह्य यमक की मात्रा अधिक। कभी-कभी रंगमंच पर साक्षात् युध्द का ही लौगाक्षिगृह्यसूत्र ऐसा नामान्तर कहीं कहीं किया गया दर्शन, जो भारतीय नाट्यशास्त्र में निषिद्ध है। है। कठ और लौगाक्षि भिन्न व्यक्ति थे या एक यह विवाद्य विषय है। (6) ले. हरिदास सिद्धान्तवागीश । रचनाकाल सन 1888 । कठरुद्र-उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की गद्य-पद्यात्मक शाखा। यह नाटक लेखक ने 15 वर्ष की अवस्था में लिखा। प्रजापति द्वारा देवताओं को ब्रह्मविद्या का जो उपदेश किया उसी वर्ष कोटलिपाडा में इस का अभिनय हुआ। गया उसमें, ब्रह्मज्ञान से ही ब्रह्मप्राप्ति के तत्त्व का निरूपण किया है। कक्षपुटम् -(नामान्तर - नागार्जुनीय, सिद्धचामुण्डा, सिद्धनार्जुनीय न कर्मणा न प्रजया न चान्येनापि केनचित् । कच्छपुट, कक्षपुटी, कक्षपुटमंत्रशास्त्र, कक्षपुटतंत्र आदि) ले. ब्रह्म-वेदनमात्रेण ब्रह्माप्नोत्येव मानवः ।। सिद्ध नागार्जुन। पटलसंख्या - 20। इसमें वशीकरण, आकर्षण, अर्थात् - मानव को कर्म से, प्रजा से अथवा अन्य किसी स्तंभन, मोहन, उच्चाटन, मरण, विद्वष करा देना, व्याधि पैदा उपाय से नहीं बल्कि केवल ब्रह्मज्ञान से ही ब्रह्म-प्राप्ति होती कर देना, पशु फसल और धन का नाश कर देना, जादूटोना, है। इस उपनिषद् में पंचीकरण पद्धति से सृष्टि की उत्पत्ति यक्षिणीमंत्र, चेटक, दिव्य अंजन से अदृश्य कर देना, खडाउओं का क्रम तथा आत्मा के पंचकोशों का विवेचन है। को चला देना, आकाशगमन, गडा धन निकाल देना, सेना कठोपनिषद् -कृष्ण यजुर्वेद की काठक शाखा का एक भाग। को स्तब्ध कर देना, बहते जल को रोक देना आदि तान्त्रिक इसमें यम द्वारा नचिकेत को ब्रह्मविद्या का निरूपण किया गया विधियां शाम्भव, यामल, शाक्त, कौल, डामर आदि विविध है। इसके कुल दो अध्याय हैं। इनमें आत्मा की अमरता का तन्त्रों का अवलोकन कर आगमीकृत तथा अन्यान्य लोगों के सिद्धान्त और आत्मज्ञान की प्राप्ति के मार्ग का विवेचन है। मुख से सुनकर सार रूप में निवेदन किए हैं। यम ने आत्मा को ज्ञानस्वरूप, अविनाशी और परमात्मा से कक्षपुटीविद्या -ले. 'नित्यनाथ। माता-पार्वती। श्लोक- 3271 . अभिन्न बताया है। इसलिये वह सर्व प्रकाशक है। यह मन्त्रसार के सिध्दखण्ड से गृहीत ग्रंथ है। न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं कचशतकम् -ले. वरदकृष्णम्माचार्य। वालजूर (तंजौर) के नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमाग्निः । निवासी। ई.. 19 वीं शती। तमेव भान्तमनुभति सर्वं कच्छवंशम् -ले. कृष्णराम । जयपुर के निवासी। आयुर्वेदाचार्य तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ।। विषय- जयपुर के पांच नरेशों का चरित्र वर्णन । अर्थात्- वहां सूर्य, चन्द्र और तारकों का प्रकाश नहीं कटाक्षशतकम् -ले. म.म.गणपति शास्त्री, वेदान्तकेसरी । भक्तिनिष्ठ पहुंच सकता, यह विद्युत प्रकाश भी नहीं पहुचता तब वहां काव्य। ई. 19-20 वीं शती। अग्नि कैसे पहुंचेगा। उस (परमात्मा) के प्रकाशित होते ही कटुविपाक -ले. लीला राव -दयाल । पंडिता- क्षमादेवी राव सभी प्रकाशमान होते हैं। उसके प्रकाश से ही यह सब लिखित "ग्रामज्योति" नामक कथा पर आधारित. एकांकिका । दिखाई देता है। विषय- शासकीय अधिकारी पिता की युवा पुत्री रेखा सत्याग्रह आत्मज्ञान प्राप्ति का मार्ग यम ने इस प्रकार बताया हैआन्दोलन में प्राणोत्सर्ग करती है, यह कटु विपाक देखते हुए श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतः पश्चातापदग्ध पिता की अवस्था । तौ संपरीत्य विविनक्ति धीरः कठ (अथवा काठक) शाखा -[कृष्ण यजुर्वेदीय] | जिस श्रेयो हि धीरोऽभिःप्रेयसो वृणीते प्रकार वैशंपायन चरक के सब शिष्य चरक कहलाते हैं, वैसे प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते ।। ही कठ के भी समस्त शिष्य कठ ही कहलाते हैं। अनेक अर्थात्- श्रेय और प्रेय दोनों मिश्ररूप में जीव के समक्ष कठों में जो प्रधान कठ था उसे ही आद्य कठ कहा गया उपस्थित होते हैं। जो बुद्धिमान् है वह श्रेय का और मंद है। कठ एक चरण है। इस की अवान्तर शाखाएं अनेक बुद्धिवाला योगक्षेम चलाने के लिये प्रेय का चुनाव करता है। होंगी। पुराणों में निर्दिष्ट प्रमाणों के अनुसार उत्तर दिशा में यम के अनुसार श्रेय विद्या और प्रेय अविद्या है। श्रेय अल्मोडा, गढवाल, कुमाऊं, काश्मीर पंजाब, अफगानिस्तान को स्वीकार करने से ही आत्मज्ञान और परमानंद की प्राप्ति संभव है। आदि देशों में से कोई एक देश कठ नामक होगा। ____ इस उपनिषद् में “रथरूपक" द्वारा आत्मा, बुद्धि, मन, काठकसंहिता, कठब्राह्मण (कुछ अंश) और काठकगृह्य इन्द्रियां और विषय इनका अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। सूत्र उपलब्ध हैं। कठ-ब्राह्मण का नाम शताध्ययन ब्राह्मण भी कणः लुप्तः गृहं दहति -टालस्टाय की कथा "ए स्पार्क था। इसके अतिरिक्त कठ आरण्यक या कठ-प्रवर्दी ब्राह्मण निगलेक्टेड बर्न्स दी हाऊस" का अनुवाद। अनुवादक है 48 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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