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कृष्णसामयाजी। कणादरहस्यम् -ले. शंकर मिश्र। ई. 15 वीं शती। कण्णकीकोवलम् -6 सर्ग का काव्य। मूल शीलपट्टिकारम् नामक मलयालम् काव्य का अनुवाद । अनुवादक- सी.नारायण नायर। कण्वकंठाभरणम् -ले. अनंताचार्य। ई. 18 वीं शती। कथाकल्पद्रुमः -संस्कृत चंद्रिका में दी गयी जानकारी के अनुसार कथाकल्पद्रुमः नामक 8 पृष्ठों वाली पत्रिका 1899 में आप्पाशास्त्री के सम्पादकत्व में प्रारंभ हुई। प्रकाशन स्थल महाराष्ट्र में कोल्हापुर क्षेत्र था। इस पत्रिका में "अरेबियन नाइटस्" का संस्कृत अनुवाद प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ था। कथाकोष -ले. ब्रह्मदेव। जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। कथाकौतुकम् - "युसुफ-जुलेखा" नामक पर्शियन कथा का अनुवाद। ले. श्रीधर, ई. 15 वीं शती । कथापंचकम् -ले. क्षमादेवी राव। आधुनिक विषयों पर पांच पद्यात्मक कथाएं कथामंजरी -1. ले. जगन्नाथ। अरविन्दाश्रम की श्री. माताजी द्वारा फ्रान्सीसी भाषा में लिखित नीतिकथाओं (बेल्जिस्तवार) का संस्कृत अनुवाद (सटीक)।
2. ले. व्ही. अनन्ताचार्य कोडंबकम्। यह कथासंग्रह गद्य-पद्यात्मक है। कथालक्षणम् -ले. मध्वाचार्य। ई. 12-13 श. कथाविचार -ले. भावसेन त्रैविद्य । जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती । कथाशतकम् -अन्यान्य प्रादेशिक भाषाओं की रोचक 100 कथाओं का संकलित अनुवाद। अनुवादक- एस. वेङ्कटराम शास्त्री। कथासरित्सागर -कवि सोमदेव ने ई.स. 11 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में काश्मीर के राजा अनंतदेव की विदुषी पत्नी सूर्यवती के प्रोत्साहन पर "कथासरित्सागर" की रचना की। इसमें कुल 18 लंबक, 124 तरंग और 24 हजार श्लोक हैं। लंबकों के नाम हैं- कथापीठ, कथामुख, लावाणक, नरवाहन-दत्तजनन, चतुर्दारिका, मदनमंचुका, रत्नप्रभा, अलंकारवती, शक्तियश, वेला, शशांकवती, मदिरावती, पंचमहाभिषेक, सुरतमंजरी, पद्मावती व विषमशाल।
इन कथाओं के माध्यम से तत्कालीन भारतीय रीति-रिवाज, कला-विलास, नारीचरित्र, धार्मिक विश्वास और संकेतों का परिचय होता है। रचना में अनुष्टुभ् छंद का प्रयोग इसकी विशेषता है। कथासूक्तम् -ऋग्वेद के कुछ सूक्तों में बीजरूप में कुछ कथाएं हैं जिनका आगे चलकर ब्राह्मणग्रंथों में विस्तार हुआ है। जैसे ऋ. 1.24. में उल्लेखित शुनः शेपकथा, ऐ. ब्राह्मण में
(5.14.) विस्तारित है। ऋ.1-454 के विष्णुसूक्त से शतपथब्राह्मण में वामनावतार कथा ली गयी है। ऋग्वेद की अन्य कथाएं हैं :- गौतमकथा (1/85), वामदेवकथा (1-28), श्यावाश्वकथा (75.61), सप्तवधिकथा (5-78), दाशराज्ञयुद्धकथा (7-18,33), नमुचिवधकथा (8-14), नाभानेदिष्टकथा (10.61) इन कथाओं से संबंधित सूक्त कथासूक्त कहे जाते हैं। कनकजानकी (नाटक)-ले. क्षमेन्द्र। ई.11 वीं शती। पिता प्रकाशेन्द्र। विषय- प्रभु राम का वनवासोत्तर चरित्र कनकलता -काव्यम् -ले. ताराचन्द्र (ई.17-18) वीं शती। कनकलता -मूल शेक्सपियर के काव्य 'ल्यूक्रेस' का अनुवाद । अनुवादक- पी. के. कल्याणराम शास्त्री। मद्रासनिवासी। कन्यादानम् -लेखिका- डॉ. माणिक पाटील । अमरावती (विदर्भ) निवासी। एकांकी नाटिका। विषय- राजपूत महिला कृष्णाकुमारी का चरित्र। कपाट-विपाटिनी ले. प्रेमचन्द्र तर्कवागीश। कविराजकृत "राघव-पाण्डवीय' नामक द्वयर्थी काव्य की व्याख्या । कपालकुण्डला -बंकिमचन्द्र के बंगाली उपन्यास पर आधारित नाटक। ले. हरिचरण। (प्रसिध्द लेखक विष्णुपद भट्टाचार्य के पिता । संस्कृत साहित्य परिषद् के 37 वें वार्षिकोत्सव में अभिनीत ।
अंकसंख्या सात । कथावस्तु- नवकुमार की प्रथम पत्नी मति ब्राह्मण वेष में कपालकुण्डला से मिलती है, यह देख नायक उसके चरित्र पर शंका करता है। अपमानित नायिका प्राणोत्सर्ग करती है। पश्चात्तापदग्ध नायक भी आत्महत्या करता है। कपिलगीता -श्रीमद्भागवत में कर्दमपुत्र कपिल (भगवान् विष्णु का पांचवा अवतार) ने अपनी माता देवहूति को दिया हुआ उपदेश, “कपिलगीता" नाम से प्रसिद्ध है। कपिलस्मृति -ले. कपिल । सांख्यसूत्राकार कपिल मुनि से भिन्न व्यक्तित्व। कपिष्ठल-कठ संहिता (कृष्ण यजुर्वेद)-कृष्ण यजुर्वेद की कपिष्ठल-कठ संहिता अपनी मूलशाखा परिवार से बहुत मिलती-जुलती है। पतंजलि के समय इस शाखा का प्रचार
था, ऐसा प्रमाणों से दीखता है। सम्प्रति इसका नाम ही रह गया है। इसके पदपाठ का भी उल्लेख पाया जाता है। कपिष्ठल-कठशाखा की संहिता, आठ अष्टकों और 64 अध्याओं में विभक्त थी। सम्प्रति प्रथमाष्टक, चतुर्थाष्टक, पंचमाष्टक और षष्ठाष्टक ही मिलते हैं। कपोतालय - ले. श्रीमती लीला-राव दयाल। जगदीशचंद्र माथुर द्वारा लिखित कथा का प्रहसनात्मक रूपान्तर ।
कमला - स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रसिद्ध 'कमला' नामक मराठी महाकाव्य का संस्कृत अनुवाद। अनुवादक डॉ. ग.बा. पळसुले। पुणे-निवासी।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 49
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