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विभाजन (?) पदों में
होता है676 व्याकरणशास्त्र में - वामन । जयादित्य।
'न्यासकार' उपाधि से जिनेन्द्रबुद्धि । कात्यायन ।
(?) प्रसिद्ध है677 भारतीय शिल्पशास्त्र की - 16/18/20/22 ।
(?) संहिताएँ विदित है678 काश्यपशिल्पम् नामक - आनंदाश्रम संस्कृत
प्रथम शिल्पसंहिता का ग्रंथावली। निर्णयसागर प्रकाशन (?) ने किया- प्रकाशन । भाण्डारकर
प्राच्यविद्या शोध संस्थान। हिंदुधर्मसंस्कृतिमंदिर।
679 आगमशास्त्र के अन्तर्गत - 14/16/18/20
रुद्रागमों की संख्या (?)
663 शास्त्रोक्त तीन ऋणों में - देवऋण । ऋषिऋण।
(?) ऋण नही माना पितृऋण । समाजऋण।
जाता664 राजशेखर ने कवि का - शास्त्रकवि । काव्यकवि ।
(?) नामक प्रकार नहीं उभयकवि । महाकवि
माना 665 राजशेखर की काव्य- - रेवाप्रसाद द्विवेदी।
मीमांसा पर आधुनिक नारायणशास्त्री खिस्ते। कालमें (?) ने टीका रामचन्द्र आठवले। लिखी है
बदरीनाथ शुक्ल। 666 दण्डीके काव्यादर्शका - बोथलिंक । वेबर ।
जर्मन अनुवाद (?) ने याकोबी । विंटरनिटझ्
किया667 वाग्भटकत काव्यान - 161141201301
शासन में (?) प्रकार के
काव्यदोष वर्णित है668 काव्यशास्त्र का स्वतंत्ररूप- रुद्रट । भामह ।दण्डी।
से विचार करनेवाला वाग्भट ।
प्रथम ग्रंथकार (?) है669 काव्यालंकार के लेखक - महाकाव्य । महाकथा।
रुद्रट के अनुसार प्रबंध- आख्यायिका । चम्पू। काव्य के अन्तर्गत (?)
नहीं आता670 काव्यालंकारसारसंग्रहकार- ललितापीड । जयापीड ।
उद्भट (?) काश्मीर- अवंतिवर्मा । प्रवरसेन
नरेश के आश्रित थे671 साहित्यशास्त्र का सूत्रबद्ध - काव्यसूत्रसंहिता । काव्येन्दु
प्रथम ग्रंथ है वामनकृत प्रकाश । काव्यालंकार (?)
सूत्रवृत्ति । काव्यालंकार
संग्रह। 672 साहित्यशास्त्रमें रीति - वैदर्भी। गौडी । लाटी।
संप्रदाय के प्रवर्तक वामन पांचाली।
ने (?) रीति नहीं मानी673 अर्वाचीन पद्धतिसे काव्य - ब्रह्मानंद शर्मकृत काव्यतत्त्वा
शास्त्र की आलोचना(?) लोक । रेवाप्रसाद द्विवेदीकृत ग्रंथ में नहीं है
काव्यालंकारकारिका। गुलाबराव महाराजकृत काव्यसूत्र संहिता। मानवल्ली गंगाधरशास्त्रिकृत
काव्यात्मसंशोधन। 674 संस्कृत व्याकरण में - 3/7/9/10।
धातुओं का विभाजन
(?) गणों में हुआ है675 संस्कृत धातुओं का - 2/3/4/5।
680 उदयनाचार्य कृत - वैशेषिक । न्याय । मीमांसा ।
किरणावली (?) शास्त्र वेदान्त ।
का प्रसिद्ध ग्रंथ है681 किरातार्जुनीय महाकाव्य 81181 19168
की सर्गसंख्या (?) है682 "लक्ष्मीपदांक" (?) रघुवंश । किरातार्जुनीय।
महाकाव्य को कहते है- शिशुपालवध । नैषधचरित 683 मल्लिनाथ ने (?) - कालिदास । भारवि ।
महाकवि की वाणी को माघ । श्रीहर्ष नारिकेलफल की उपमा
दी है
684 किरातार्जुनीयम् पर लिखी - 35/40/45/50
गई टीकाओं की संख्या
(?) से अधिक है685 कुट्टनीमत के लेखक - प्रधानमंत्री । सेनापति ।
दामोदर गुप्त काश्मीर पुरोहित । मित्र नरेश जयापीड के (?)
686 कुमारसंभव के 17 सर्गो - 7/8/10/12/
में कालिदास रचित सों की संख्या (?) मानी
जाती है687 कुमारसंभव के 36 - मल्लिनाथ । कल्लिनाथ। टीकाकारों में (?) नहीं है भरत मल्लिक।
अरुणगिरिनाथ। 688 शिवपार्वती के विवाह का - 5/6/7/8
सुंदर वर्णन कुमारसंभव के (?) सर्ग में है
संस्कृत वाङ्मय प्रश्नोत्तरी / 23
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