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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभाजन (?) पदों में होता है676 व्याकरणशास्त्र में - वामन । जयादित्य। 'न्यासकार' उपाधि से जिनेन्द्रबुद्धि । कात्यायन । (?) प्रसिद्ध है677 भारतीय शिल्पशास्त्र की - 16/18/20/22 । (?) संहिताएँ विदित है678 काश्यपशिल्पम् नामक - आनंदाश्रम संस्कृत प्रथम शिल्पसंहिता का ग्रंथावली। निर्णयसागर प्रकाशन (?) ने किया- प्रकाशन । भाण्डारकर प्राच्यविद्या शोध संस्थान। हिंदुधर्मसंस्कृतिमंदिर। 679 आगमशास्त्र के अन्तर्गत - 14/16/18/20 रुद्रागमों की संख्या (?) 663 शास्त्रोक्त तीन ऋणों में - देवऋण । ऋषिऋण। (?) ऋण नही माना पितृऋण । समाजऋण। जाता664 राजशेखर ने कवि का - शास्त्रकवि । काव्यकवि । (?) नामक प्रकार नहीं उभयकवि । महाकवि माना 665 राजशेखर की काव्य- - रेवाप्रसाद द्विवेदी। मीमांसा पर आधुनिक नारायणशास्त्री खिस्ते। कालमें (?) ने टीका रामचन्द्र आठवले। लिखी है बदरीनाथ शुक्ल। 666 दण्डीके काव्यादर्शका - बोथलिंक । वेबर । जर्मन अनुवाद (?) ने याकोबी । विंटरनिटझ् किया667 वाग्भटकत काव्यान - 161141201301 शासन में (?) प्रकार के काव्यदोष वर्णित है668 काव्यशास्त्र का स्वतंत्ररूप- रुद्रट । भामह ।दण्डी। से विचार करनेवाला वाग्भट । प्रथम ग्रंथकार (?) है669 काव्यालंकार के लेखक - महाकाव्य । महाकथा। रुद्रट के अनुसार प्रबंध- आख्यायिका । चम्पू। काव्य के अन्तर्गत (?) नहीं आता670 काव्यालंकारसारसंग्रहकार- ललितापीड । जयापीड । उद्भट (?) काश्मीर- अवंतिवर्मा । प्रवरसेन नरेश के आश्रित थे671 साहित्यशास्त्र का सूत्रबद्ध - काव्यसूत्रसंहिता । काव्येन्दु प्रथम ग्रंथ है वामनकृत प्रकाश । काव्यालंकार (?) सूत्रवृत्ति । काव्यालंकार संग्रह। 672 साहित्यशास्त्रमें रीति - वैदर्भी। गौडी । लाटी। संप्रदाय के प्रवर्तक वामन पांचाली। ने (?) रीति नहीं मानी673 अर्वाचीन पद्धतिसे काव्य - ब्रह्मानंद शर्मकृत काव्यतत्त्वा शास्त्र की आलोचना(?) लोक । रेवाप्रसाद द्विवेदीकृत ग्रंथ में नहीं है काव्यालंकारकारिका। गुलाबराव महाराजकृत काव्यसूत्र संहिता। मानवल्ली गंगाधरशास्त्रिकृत काव्यात्मसंशोधन। 674 संस्कृत व्याकरण में - 3/7/9/10। धातुओं का विभाजन (?) गणों में हुआ है675 संस्कृत धातुओं का - 2/3/4/5। 680 उदयनाचार्य कृत - वैशेषिक । न्याय । मीमांसा । किरणावली (?) शास्त्र वेदान्त । का प्रसिद्ध ग्रंथ है681 किरातार्जुनीय महाकाव्य 81181 19168 की सर्गसंख्या (?) है682 "लक्ष्मीपदांक" (?) रघुवंश । किरातार्जुनीय। महाकाव्य को कहते है- शिशुपालवध । नैषधचरित 683 मल्लिनाथ ने (?) - कालिदास । भारवि । महाकवि की वाणी को माघ । श्रीहर्ष नारिकेलफल की उपमा दी है 684 किरातार्जुनीयम् पर लिखी - 35/40/45/50 गई टीकाओं की संख्या (?) से अधिक है685 कुट्टनीमत के लेखक - प्रधानमंत्री । सेनापति । दामोदर गुप्त काश्मीर पुरोहित । मित्र नरेश जयापीड के (?) 686 कुमारसंभव के 17 सर्गो - 7/8/10/12/ में कालिदास रचित सों की संख्या (?) मानी जाती है687 कुमारसंभव के 36 - मल्लिनाथ । कल्लिनाथ। टीकाकारों में (?) नहीं है भरत मल्लिक। अरुणगिरिनाथ। 688 शिवपार्वती के विवाह का - 5/6/7/8 सुंदर वर्णन कुमारसंभव के (?) सर्ग में है संस्कृत वाङ्मय प्रश्नोत्तरी / 23 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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