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कुलार्णव का एक अंश हैं। इसमें वैष्णवों के आधार धर्म निरूपित है। ईशान शिवगुरुदेवपद्धति - विषय- शिल्प शास्त्र । तीन भागों में प्रकाशित । डा.कु. रूटेला क्रेमरिश ने इसका अनुवाद किया जो कलकत्ता ओरिएंटल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। ईशानसंहिता - (1) ले.- यदुनाथ। आगमकल्पलता का आधारभूत ग्रंथ । विषय- तंत्रशास्त्र। (2) ईश्वर अगस्त्य संवादरूप तंत्रशास्त्रीय ग्रंथ। ज्ञानरत्नाकर तथा अमरीकल्प आदि इसी से गृहीत हैं। ईशावास्य (या ईश) उपनिषद् -यह "शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी संहिता का अंतिम (40 वां) अध्याय है। इसमें 18 मंत्र हैं तथा प्रथम मंत्र के आधार पर इसका नामकरण किया गया है।
ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किंच जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।। इसमें जगत् का संचालन एक सर्वव्यापी अंतर्यामी द्वारा होने का वर्णन है। द्वितीय मंत्र में कर्म सिद्धांत का वर्णन करते हुए निष्काम भाव से कर्म करने का विधान है तथा सर्व भूतों में आत्मदर्शन एवं विद्या व अविद्या के भेद का वर्णन है। तृतीय मंत्र में अज्ञान के कारण मृत्यु के पश्चात् प्राप्त होने वाले दुःख का वर्णन तथा चौथे से सातवें मंत्र में ब्रह्मविद्या विषयक मुख्य सिद्धांतों का वर्णन है। नवें से ग्यारहवें श्लोक में विद्या व अविद्या के उपासना के तत्त्व का निरूपण तथा कर्मकांड और ज्ञानकांड के पारस्परिक विरोध व समुच्चय का विवेचन है। तद्नुसार ज्ञान व विवेक से रहित कोरे कर्मकांड की आराधना करने वाली व्यक्ति घोर अंधकार में प्रवेश कर जाते हैं। अतः ज्ञान व कर्म के साथ चलने वाला व्यक्ति शाश्वत जीवन तथा परमपद प्राप्त करता है। 12 से 14 वें श्लोक में संभूति व असंभूति की उपासना के तत्त्व का निरूपण है। 15 व 16 वें श्लोक में भक्त के लिये अंतकाल में परमेश्वर की प्रार्थना पर बल दिया गया है और अंतिम दो श्लोकों में शरीर त्याग के समय प्रार्थना तथा परम धाम जाते समय अग्नि की प्रार्थना का वर्णन किया है। इसमें एक परम तत्त्व की सर्वव्यापकता, ज्ञान-कर्म समुच्चयवाद का निदर्शन, निष्काम कर्मवाद की ग्राह्यता, भोगवाद की क्षणभंगुरता, अंतरात्मा के विरुद्ध कार्य : न करने का आदेश तथा आत्मा के सर्वव्यापक रूप का ज्ञान प्राप्त करने का उपदेश है। इस उपनिषद् पर सभी' आचार्यों के भाष्य हैं, अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी इस पर भाष्य लिखे हैं। ईशोपनिषद्भाष्य - ले. गणपति मुनि। ई. 19-20 वीं शती। पिता- नरसिंह शास्त्री। माता- नरसांबा। ईश्वरदर्शनम् - ले, प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। यह सूत्रबद्ध आधुनिक ग्रंथ है।
ईश्वरदर्शनम् (तपोवनदर्शनम्) - ले.-' तपोवनस्वामी। 1950 ई. में लिखित । मलबार (त्रिचूर) में प्रकाशित आत्मचरित्र पर उल्लेखनीय काव्य है। ईश्वरदूषणम् - ले.- ज्ञानश्री। ई. 14 वीं शती के बौद्धाचार्य । ईश्वरास्तित्ववादी मत का खंडन।। ईश्वरप्रत्यभिज्ञा - ले.- उत्पलाचार्य । श्लोकसंख्या- 200। यह काश्मीरी शैव सम्प्रदाय का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ईश्वरभंगकारिका - ले.- कल्याणरक्षित। ई. 9 वीं शती। विषय- बौद्धमतानुसार ईश्वरास्तित्ववाद का खंडन।। ईश्वरविलसितम् - ले.- श्री भट्टमथुरानाथ शास्त्री। जयपुरनिवासी। ईश्वरसंहिता -सन् 1923 में कांजीवरम् में यह पांचरात्र मत की संहिता प्रकाशित हुई। इसमें कुल 24 अध्याय हैं। 16 अध्यायों में पूजाविधान का वर्णन है। इस संहिता के अनुसार समस्त वेदों का उगमस्थान एकायनवेद है जो वासुदेवप्रणीत है। इसी वेद के आधार पर पांचरात्र संहिता और मन्वादि धर्मशास्त्र निर्माण हुए। ईश्वरस्तुति -ले.- शंकरभट्ट। ई. 17 वीं शती : ईश्वरस्वरूपम् - ले.- एस.ए. उपाध्याय। वडोदरा निवासी। म. गान्धी के सिद्धान्तानुसार नवीन तत्त्वज्ञान के प्रतिपादन का प्रयास। इसमें जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, पुनर्जन्म आदि के विरोध में मत व्यक्त किए हैं। 'मुद्रित। . ईश्वरीयस्तवार्थक गीतसंहिता- बैटिस्ट मिशन, कलकत्ता, द्वारा 1877 में प्रकाशित । ईश्वरोक्तशास्त्रधारा - मूल- दि कोर्स ऑफ डिव्हाइन रिवेलेशन । अनुवादकर्ता-जान मूर। बैटीस्ट मिशन प्रेस कलकत्ता द्वारा सन् 1846 में प्रकाशित। उग्रतारापंचांग - श्लोक- 4201 देवी- भैरव संवादरूप इस ग्रंथ में उग्रतारा की पूजा-विधि तथा स्तव प्रतिपादित हैं। इसमें 3 भाग रुद्रयामल से तथा 2 भाग कुलसर्वस्व से लिए गये है।
रूद्रयामलतन्त्रान्तर्गत- (i) उग्रतारापटल
(2) उग्रतारानित्यपूजापद्धति । (3) उग्रताराकवच कुलसर्वस्वान्तर्गत :- 1
(4) उग्रतारासहस्रनामस्तव। (5) उग्रतारास्तव उग्ररथशान्ति-कल्पप्रयोग - श्लोक- 650। यह शैवागमान्तर्गत शिव-षण्मुख संवाद रूप है। प्राणियों, पुत्र-पौत्रों, धनधान्यों का नाश करने वाला तथा राजाओं को राज्यच्युत कराने वाला यह 'ऊपरथ' कौन है, इससे जीवों को त्राण कैसे मिल सकेगा। इसी प्रश्न का शिवजी ने इसमें उत्तर दिया है। इसमें प्रतिपादित विषय है जब पुरुष 60 वर्ष का हो जाये तब उसे कल्याण प्राप्ति तथा धनधान्य और पुत्र पौत्रादि की रक्षा के लिए शैवागमोक्त उग्ररथ शान्ति की विधि ।
34 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ट
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