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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तार से और दुर्गा, बगलामुखी की पूजा संक्षेपतः वर्णित है। आह्निकस्तव - रचयिता ब्रह्मश्री कपाली शास्त्री। इसमें श्रीमदरविन्द त्रिपदा-स्तवत्रयम् (आध्यात्मिक काव्य) तथा सूक्तस्तवः नामक काव्य समाविष्ट । दूसरे काव्य में ऋग्वेद प्रथम मण्डल, द्वादश अनुवाद में पराशर के अग्निसूक्तों का भाव, अरविन्दतत्त्व के अनुसार प्रदर्शित हैं। इसके तीसरे काव्य कुमारस्तव में हृदय में स्थित दिव्य अग्नि ही कुमारगुह है यह भाव प्रदर्शित किया है। आह्वरक शाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) - आह्वरक के संहिता और ब्राह्मण दोनों ही विद्यमान थे। आज वे लुप्त हैं। आह्वरक शाखा का एक मंत्र पिंगल सूत्र की अपनी टीका में यादवप्रकाश ने उद्धृत किया है। इन्दिराभ्युदय - ले.- राघवाचार्य (2) रघुनाथ इन्दिराभ्युदयचम्पू - ले.- रघुनाथ। इंदूतम - रचयिताविनय-विजय-गणि। समय- 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। इस काष्य में कवि ने अपने गुरु विजयप्रभ सूरीश्वर महाराज के पास चंद्रमा से संदेश भेजा है। सूरीश्वरजी सूर्यपुर (सूरत) में चातुर्मास पिता रहे हैं और कवि जोधपुर में है। इस क्रम में कवि ने जोधपुर से सूरत तक के मार्ग का उल्लेख किया है। "इंदुदूत" में 131 श्लोक हैं और संपूर्ण रचना मंदाक्रांता वृत्त में की गई है। इसकी रचना "मेघदूत' के अनुकरण पर हुई है किन्तु इसमें नैतिक या धार्मिक तत्त्वों की प्रधानता होने के कारण, सर्वथा नवीन विषय का प्रतिपादन किया गया है। गुरु की महिमा के अनेक पद्य हैं। स्थान-स्थान पर नदियों व नगरों का अत्यंत मोहक चित्रण है। इसका प्रकाशन श्री जैन साहित्य वर्धक सभा, शिवपुर (पश्चिम खानदेश) से हुआ है। इन्दुमती - ले.- इन्दुमित्र। समय- ई. 9 से 12 वीं शती। पाणिनीय अष्टाध्यायी पर टीका। इन्दुमती-परिणय - ले.- तंजौर के नरेश शिवाजी महाराज । (ई. 1833-1855) यह यक्षगानात्मक नाटक है। इसका प्रथम अभिनय तंजौर में बृहदीश्वर की चैत्रोत्सव यात्रा में हुआ। इसकी प्रस्तावना सूत्रधार ने लिखी है। रंगमंच पर सूत्रधार प्रारंभ से अंत तक उपस्थित रहता है। सभी संवाद संस्कृत में हैं। जयगान, शरणगान, मंगलगान, तत्पश्चात गणेश, सरस्वती, परमेश्वर तथा विष्णु की स्तुति के बाद कथानक प्रारम्भ होता है। व्याकरणात्मक अशुद्धियों भरपूर है। इसमें रघुवंश में वर्णित अज-इन्दुमती के विवाह की कथा वर्णित है। इन्द्रजालम् - ले.- नित्यनाथ। विषय- तंत्रशास्त्र । इन्द्रजाल-उड्डीशम् - ले.- रावण। विषय- तंत्रशास्त्र। इन्द्रजालविधानम् - ले.- नागोजी। विषय- तंत्रशास्त्र। इन्द्रजालकौतुकम् - ले.- पार्वती-पुत्र नित्यनाथ सिद्ध या सिद्धनाथ। विषय- तंत्रशास्त्र । इन्द्रद्युम्नाभ्युदयम् • ले.- व्यंकटेश वामन सोवनी। विषयआध्यात्मिक काव्य। इन्द्राक्षीपंचांगम् - प्रथम खण्ड में रुद्रयामलान्तर्गत उमा-महेश्वर संवादरूप इन्द्राक्षीपद्धति एवं 10 से 12 तक रुद्रयामलान्तर्गत ईश्वर-पार्वती संवादरूप इन्द्राक्षीकवच का वर्णन है। द्वितीय खण्ड में रुद्रयामलान्तर्गत उमा-महेश्वर संवादरूप इन्द्राक्षीसहस्त्र नाम स्तोत्र है तथा तृतीय खण्ड में रुद्रयामलान्तर्गत उमा महेश्वर संवादरूप इन्द्राक्षीस्तोत्र है। अन्त में देवी इन्द्राक्षी का ध्यान दिया गया है। इन्द्राणी-सप्तशती - ले.- वासिष्ठ गणपति मुनि। ई. 19-20 शती। पिता- नरसिंह शास्त्री। माता-नरसांबा । विषय- स्तोत्रकाव्य । इलेश्वरविजयम् - ले.- ईश्वरोपाध्याय। ई. 8 वीं शती। इष्टार्थद्योतिनी - श्लोक 52301 32 पटलों में पूर्ण। विषयविविध औषधियां तथा वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, मोहन, मारण आदि तांत्रिक षट्कर्म। इष्टिपद्धति - ले.- कात्यायन। विषय-कर्मकाण्ड। इष्टोपदेश - ले.- देवनन्दी पूज्यपाद। (जैनाचार्य) ई. 5-6 शती। माता-श्रीदेवी। पिता-माधवभट्ट । ईशलहरी - ले.- व्यङ्कटेश वामन सोवनी। स्तोत्र काव्य । ईशान-शिवगुरुदेव-पद्धति -(1) श्लोक संख्या 215। यह कुलार्णव तन्त्रान्तर्गत शिव-पार्वती संवाद रूप, फिर नारद-गौतम संवादरूप वैष्णव तंत्र है। शिवजी के छठे मुख से (जो गुप्त और ईशान कहलाता है) निकलने के कारण, "ईशान" कहलाता है। तन्त्र के छह आम्नाय जो विविध देवी-देवताओं की पूजाविधि का प्रतिपादन करते हैं, शिवजी के छह मुखों से निकले हैं। जैसे इसी तंत्र के प्रारंभ में कहा है- भुवनेश्वरी, अन्नपूर्णा, महालक्ष्मी और सरस्वती ये देवियां चतुर्वग देने वाली हैं। इनके मंत्र वांछित फल देने वाले हैं और वे सब मन्त्र तथा साधन शिव के पूर्व मुख से कहे गये हैं। दक्षिणामूर्ति, गोपाल और विष्णु ये भी चतुर्वर्ग देने वाले हैं। इनके मन्त्र साधनों सहित दक्षिण मुख से कहे गये हैं। काली, तारा, महिषमर्दिनी, · त्वरिता, बगला, जयदुर्गा तथा मातंगिनी आदि प्रत्येक युग में पूर्ण कला हैं। कलियुग में तो उनकी पूर्ण कला विशेष रूप से व्यक्त है। उनके मन्त्र और साधन उत्तर मुख से कहे गये हैं। त्रिपुरेश्वरी चण्डी, त्रिपुरभैरवी, त्रिपुरा, नित्या तथा अन्यान्य देवता चतुर्वर्गप्रद हैं। साधनों सहित उनके मन्त्र मनुष्यों के भोग और मोक्ष के लिये अर्ध्व मुख से कहे । गये हैं। सूर्य, चन्द्रमा, हनुमान्, गौरांगी, अपराजिता, प्रत्यंगिरा तथा अन्यान्य देवता चतुर्वर्गफलप्रद हैं। इनके मंत्र और साधन गुप्त मुख से कहे गये हैं। (2) श्लोक- 181। यह नारद-गौतम संवादरूप गुप्तानाय संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/33 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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